वो किताब को जो भाग भणरियो हो वो अस्यान हो। “वींने बली वेबावाळा गारा का जस्यान ले जारिया हा। वो तो वीं उन्याँ का जस्यान छानो-मानो हो, जो आपणी ऊन काटबावाळा का हामे छानो रेवे।
पण ज्यो वींपे विस्वास ने करे, वीं वींको नाम कस्यान लेई? अन जणा वींके बारा में हुण्यो भी ने हे, वीं वींपे विस्वास कस्यान करी? अन जद्याँ तईं वाँने कुई उपदेस देबावाळो ने वेवे तो वीं कस्यान हुण सकी?
ईं वाते हाराई असुद कामाँऊँ अन च्यारूँमेर की बुरईऊँ छेटी रेज्यो। पण धिज्यो राकबावाळा वेन परमेसर का बचन जीं थाँका मन में हे वाँने मानज्यो, ताँके वीं थाँकी आत्मा ने छुटकारो दे सके।