34 में मिसर में आपणाँ लोग-बागाँ की लारे अन्याव वेता देक्यो अन वाँने रोता तका हुण्या। वाँने छुड़ाबा के वाते मूँ अटे आयो हूँ। अबे अटे आ, मूँ थने मिसर खन्दाऊँ।”
अन कुई भी हरग में ने ग्यो, बेस वो मनक को पूत ज्यो हरगऊँ उतरियो हे।
काँके मूँ आपणी मरजी ने, पण वींकी मरजी ने पुरी करबा ने आयो हूँ, जणी मने हरगऊँ खन्दायो हे।