27 जद्याँ डूँज की चवदवी रात वी, अन माँ धक्का खाता तका अद्रिया का समन्द में पराग्या हा, जद्याँ आदीक रात का जाँजवाळा आसरो लगायो के, आपीं कणी कनारा का नके हा।
पण आपीं जरुर कटेई हेवा पाणी की जगाँ में एकदम फसाँगा।”
जद्याँ वटे वणा पाणी माप्यो तो बीस बाम पायो अन थोड़ाक आगे जान पाछो माप्यो तो पन्दरा बाम पायो।
पण जाँज में काम करबावाळा जाँजऊँ भागणा छारिया हा। आगला पाल्ड़े लंगर ने फेंकबा का बायने बंचबावाळी नावा ने रेटे उतारन जाणा छारिया।
नामेक देर मेई ईंकी हारी दोलत जाती री।’” “वीं हाराई ज्यो पाणी का जाँज चलाबावाळा अन वींपे सवार सवारी अन वीं मनक ज्यो समन्दऊँ आपणो पेट भरे हे, वीं छेटी ऊबा वेग्या।