में वाँकाऊँ क्यो, ‘रोमियाँ में अस्या रिति-रिवाज कोयने हे के, दोस लगाया तका मनक ने वाद-विवाद करन वींने बंचबा को मोको दिदा बनाई वींने दण्ड का वाते हूँप्यो जावे।’
हो विस्वासी भायाँ, मूँ अणा आकरी सबदा का हाते अणी कागद ने बन्द कररियो हूँ, राजी रिया करो, थाँका वेवार ने बदलो, एक-दूँजा ने हिम्मत बंदावो, सान्ती अन मेल-मिलापऊँ रो, तद्याँ परमेसर ज्यो परेम अन सान्ती का दाता हे थाँका हाते रेई।