35 जद्याँ वीं पंगत्याँ तईं ग्या, तो अस्यान व्यो के वींने ऊसे तोकन ले जाणो पड़्यो, काँके वींका पाच्छे लोगाँ की भीड़ गुस्सा में हाका-भार करती तकी आरी ही।
जद्याँ वणी बाग का रुकाळ्याऊँ क्यो, ‘देक, मूँ तीन सालाऊँ अणी अंजीर का रूँकड़ा के फळ देकबा आवूँ हूँ पण, मने फळ ने मले। ईंने परो काट दे, काँके अणी रूकड़े या जगाँ फालतू में रुंद मेली हे।’
जद्याँ सेनापती आग्या दिदी, तो पोलुस पंगत्याँ पे ऊबो वेन लोगाँ ने हातऊँ हानी किदी। जद्याँ वीं छाना-माना वेग्या तो वो इबरानी भासा में बोलबा लागो।
पण वटा का सेनापती लुसियास अणी ने माकाँ पूँ जोरावरीऊँ कोस लिदो।