अन पछे वाँ दुई जणा क्यो, “ओ गलील का रेबावाळा, थाँ अटे ऊबा-ऊबा आकास में काँ देकरिया हो? वीं ईसू, जीं आज अटूँ हरग में पराग्या वस्यानीस, एक दन थाँ वाँने पाच्छा हरगऊँ आता तका देको।”
वो हूळी पे दक भोगन मरिया केड़े पाका सबूत का हाते नरी दाण परगट व्यो, वो जीवतो हे। अन चाळी दनाँ तईं चेला वींने देक्यो अन वो वाँने परमेसर का राज का बारा में बतातो रियो।
वाँ हारई मनकाँ के हामे कोयने, पण बेस वाँ गवा के हामे, जो पेल्याँई परमेसर का हातऊँ थरप्या ग्या हा, ज्याँकाणी मरिया तकाऊँ जीवता व्या केड़े वाँकी लारे खादो-पीदो हो।