अन पछे वाँ दुई जणा क्यो, “ओ गलील का रेबावाळा, थाँ अटे ऊबा-ऊबा आकास में काँ देकरिया हो? वीं ईसू, जीं आज अटूँ हरग में पराग्या वस्यानीस, एक दन थाँ वाँने पाच्छा हरगऊँ आता तका देको।”
परमेसर की पुवितर आत्मा ईसू ने हरग में लेन परीगी वीं दन तईं ईसू हिकई अन किदी। ईसू को हरग में जाबाऊँ पेल्या ईसू थरप्या तका चेला ने पुवितर आत्माऊँ उपदेस दिदा।
कुई ने नट सके के, आपणाँ धरम को भेद कस्यो मोटा हे, वो ज्यो मनक का रूप में परगट व्यो, पुवितर आत्मा जिंने धरमी बतायो, अन हरग-दुत जिंने देक्यो, देसा देसा में वींको परच्यार करियो ग्यो, दनियाँ में वींपे विस्वास करियो ग्यो, अन मेमावान हरग में उठा लिदो ग्यो।
देको, वो वादळा का हाते आबावाळो हे अन वींने हाराई आपणी आक्याँऊँ अन वीं मनक भी जणा वींने दुक दिदो हो देकी। अन धरती का हाराई मनक वाँके वजेऊँ रोई। अस्यान पाको हे के, यो वेई, आमीन।
ईं मनक कूँवारा हा अन ने ईं कणी लुगई का हाते कदी हूँता। अन जटे वीं उन्यो जातो ईं वींके हाते वे जाता। ईं परमेसर का वीं पेला फळ हे, ज्याँने मोल देन छुड़ाया ग्या हा।