काँके अणा मनकाँ को मन गाटो वेग्यो हे, अणा वाँने कान्दड़ाऊँ हूणाणो बन्द वेग्यो अन वाँकाणी आपणी आक्याँ बन्द कर लिदी हे। ताँके कटे अस्यान ने वे जावे के, वाँकी आक्याँ देकती, कान्दड़ा हूणता, अन वाँका मनऊँ हमजता जणीऊँ वीं आपणाँ मन ने पापऊँ फेरन मारा नके आता अन मूँ वाँने बंचाऊँ।’”