काँकरा वाळी जगाँ का बीज वणा मनकाँ का जस्यान हे के, जद्याँ वी हुणे, तो वी आणन्द का हाते परमेसर की वाणी ने माने हे। पण वीं जड़ ने पकड़वा का मस थोड़ीक दाण विस्वास करे हे अन परक की दाण वी भाग जावे हे।
जद्याँ के थाँने एकीस हमच्यार हुणायो हो के, मसी ने मरिया तका मेंऊँ जीवतो किदो ग्यो हो तो थाँका मेंऊँ कुई कस्यान के सके हे के, मरिया केड़े पाछो जीवतो ने व्यो जा सके हे?
थाँरा मनकाँ ने, ईं बाताँ आद अवाड़ अन परमेसर का हामे चेतान केज्ये के, फोगट की बाताँ पे ने लड़े। अस्यान करणो हव ने हे, काँके वीं बाताँ हूणबावाळा का वाते नास की जड़ हे।
ओ जरूरी वेग्यो हे के, वाँको मुण्डो बन्द किदो जावे, जीं ईं गलत बाताँ हिकान विस्वास्याँ का घर ने बगाड़रिया हे अन ईं हाराई नीचपणाऊँ रिप्या-कोड़ी कमावा का चकर में अस्यान करता रेवे हे।