14 मारी मरजी हे के, वाँकी अणी घटती में थाँकी बढोतरी वाँकी जरूत पुरी करे, जणीऊँ कणी दन थाँकी घटती में वाँकी बढोतरी थाँकी जरूत पुरी कर सके, अस्यान हाराई बराबर वे जाई।
वाँकी बंच में किंने भी कणी की कमी ने ही, काँके जिंका नके जगाँ अन घर-बार हा, वे वाँने बेंच देता अन वींऊँ जो भी रिप्या-कोड़ी मलता,
काँके मूँ ओ ने छावूँ हूँ के, थाँ परेसानी में पड़ जावो अन दूजाँ ने थाँकाऊँ नफो वे, पण माँ तो हाराई को भलो छावाँ हाँ।
दानकी पुवितर सेवाऊँ बेस परमेसर का पुवितर मनकाँ किइस जरूत पुरी ने वेवे हे पण परमेसर ने धन्नेवाद देबा को भाव भी मनकाँ में आवे हे।