2 जद्याँ तईं आपाँ ईं देह में हाँ टसका भरन हेली आस राका हाँ के, फटाकऊँ हरग की देह रूपी घर ने पेर लेवा।
मूँ एक अभागो मनक हूँ। मने अणी मोत की देहऊँ कूण छुटकारो देवाड़ी?
अन आ दनियाईस ने पण आपाँ भी ज्याँने आत्मा को पेलो फळ मल्यो हो, आपाँ भी दकऊँ तड़परिया हा। काँके आपाँ ईं बात की वाट नाळरिया हे के, वो आपाँने आपणी ओलाद का जस्यान मान ले अन आपणो देहऊँ छुटकारो वे जावे।
थाँ ध्यान देन हुणो मूँ थाँने एक भेद की बात बताऊँ हूँ के, आपाँ हाराई मरा कोयने, पण आपणो रूप बदल्यो जाई।
मूँ ईं दुया का बचमें लटक्यो तको हूँ। मारो जी तो छारियो हे के, ओ डील छोड़न मसी का नके जान रूँ, काँके ओ घणोइस हव हे,