“मूँ अंगूरा की वेलड़ी हूँ, थाँ डाल्याँ हो, ज्यो मारा में बणी रेवे हे अन मूँ वाँमें वाँ हेला फळ देवे हे। काँके माराऊँ न्यारा वेन थाँ कई भी ने कर सको हो।
अन आज मूँ ज्यो कई भी हूँ परमेसर की दयाऊँ हूँ अन वींकी दया मारा वाते बेकार ने गी। काँके में दूजाऊँ हेली मेनत किदी हे, पण परमेसर की दया मारा पे हे जणीऊँ मूँ अस्यान कर सक्यो हूँ।
परमेसर की वीं दया के जस्यान, ज्यो मने दिदी गी हे, में एक हूँस्यार कारीगर के जस्यान नीम नाकी, पण वींपे सणई करबावाळो तो कुई ओरी हे। पण हरेक मनक ने ध्यान राकणो हे के, वीं कस्यान काम कररिया हे।
पण वाँका वाते ज्यो मोत का गेला पे नास वेबा का वाते जारिया हे वाँका वाते मोत का जस्यान की बाना हाँ ज्यो मोत का आड़ी ले जावे हे। पण वाँ मनकाँ वाते ज्यो बंचाया जाबा का गेला का आड़ी जारिया हे वाँका वाते जीवन का जस्यान की बाना हाँ ज्यो वाँने जीवन का आड़ी बड़ावे हे। पण अणी बाताँ का जोगा कूण हे?
परमेसर को परच्यार करती दाण नरई गवा की मोजुदगी में, जीं बाताँ थें माराऊँ हिकी हे, वाँने विस्वास जोगा मनकाँ ने हूँप दे, जीं दूजाँ ने हिकाबा को मन राकता वेवे।
काँके हाराई दान वरदान अन हव ईनाम उपरेऊँईस मले हे अन ईं उजिता का परमेसरइस देवे हे जणी हरग ने बणाया हे, ज्यो कदी बदल कोयने, अन वींमें बदलती दसा का वजेऊँ आबावाळी काळी छाया भी कोयने हे।