अन वाँ मनगड़त केण्याँ अन वंसावल्या पे मन ने लगावे, ज्यो लड़ई-जगड़ो करावे हे अन परमेसर की वीं मरजी ने पुरी ने वेवा देवे हे, ज्या खाली विस्वासऊँ पुरी वे सके हे।
ओ जाणन के, मूसा का नेम धरमी मनकाँ का वाते ने पण अधरम्याँ, केणो ने करबावाळा, परमेसर ने ने मानबावाळा, पापी, अपुवितर, असुद, बई-बापू को बुरो करबावाळा, हत्यारा,
कुई ने नट सके के, आपणाँ धरम को भेद कस्यो मोटा हे, वो ज्यो मनक का रूप में परगट व्यो, पुवितर आत्मा जिंने धरमी बतायो, अन हरग-दुत जिंने देक्यो, देसा देसा में वींको परच्यार करियो ग्यो, दनियाँ में वींपे विस्वास करियो ग्यो, अन मेमावान हरग में उठा लिदो ग्यो।