“मूँ थाँने सई-सई केवूँ हूँ, ज्यो मारा बचनाँ ने हुणन मारा खन्दाबावाळा को विस्वास करे हे, वो अनंत जीवन पावे हे। अन वाँने दण्ड ने दिदो जाई, पण वीं मोतऊँ छेटी वेन जीवन में परवेस करग्या हे।
अन आज मूँ ज्यो कई भी हूँ परमेसर की दयाऊँ हूँ अन वींकी दया मारा वाते बेकार ने गी। काँके में दूजाऊँ हेली मेनत किदी हे, पण परमेसर की दया मारा पे हे जणीऊँ मूँ अस्यान कर सक्यो हूँ।
पण यद्याँ मारा आबा में टेम लागी तो, ईं कागदऊँ जाण जाज्यो के, आपणाँ परमेसर को घराणो, जीं जीवता परमेसर की मण्डली हे या हाँच की नीम अन थम्बो हे, वींके हाते आपाँने कस्यान को वेवार करणो छावे।
थाँ भी मसी का वजेऊँईस परमेसर पे विस्वास करो हो, जणा वाँने मरिया तका मेंऊँ पाछो जीवतो कर दिदो अन वींने मेमा भी दिदी। ईं वाते थाँको विस्वास अन थाँकी आस परमेसर में गाटी बणी तकी रेवे।