16 काँके हे लुगई, थूँ कई जाणे हे के, थूँ आपणाँ बना विस्वासी धणी ने बंचाई? अन हे मनक, थूँ कई आपणी बना विस्वासी लुगई ने बंचाई?
मूँ थाँकाऊँ केवूँ हूँ के, अणीस तरियाऊँ एक मन फेरबावाळा पापी का बारा में परमेसर का हरग-दुताँ का हामें आणन्द वेवे हे।”
अस्यानीस मूँ छावूँ हूँ के, कस्यान भी मारा मनकाँ में होड़ा-होड़ ला सकूँ, जणीऊँ वाँका मूँ थोड़ागणा ने बचा लूँ।
मूँ कमजोरा मनकाँ का वाते कमजोर बण्यो ताँके वाँका मन ने जीत सकूँ। मूँ हाराई मनकाँ का वाते हारोई बण्यो, कस्यान भी करन मूँ नरई ने बंचा सकूँ।
खुद पे अन थाँरा उपदेसा पे ध्यान दे, अन अणामें अपणेआप पाको वे, काँके अस्यान करबाऊँ थूँ खुद ने अन थने हूणबावाळा ने बंचाबा को मस वेई।