हड़क का आड़ी वणी एक अंजीर को रूँकड़ो देकन वो वींका भड़े ग्यो, तो वींने पान्दड़ा ने छोड़ वींमें ओरू कई ने मल्यो। तो ईसू रूँकड़ा ने क्यो, “अबे थाँरे में कदी कई फळ ने लागी।” अन वो रूँकड़ो तरत हुकग्यो।
“ओ कपटी, मूसा का नेमा ने हिकाबावाळा अन फरीसियाँ, थाँने धिकार हे! थाँ मनकाँ का वाते हरग का राज को बारणो बन्द करो हो, ने तो थाँ खुद परवेस करो हो अन ने वींमें परवेस करबावाळा ने परवेस करबा देवो हो।
वाँकाणी या बात ईं वाते ने की के, वींने गरीबा की चन्ता ही। पण ईं वाते क्यो, काँके वो चोर हो। वाँका नके वाँके रिप्या की नोळी ही अन वो वींमेंऊँ रिप्या काड़ लेतो हो।
अबे मूँ थाँने परमेसर अन वींकी करपा का संदेसा में थाँने हूँप दूँ हूँ। वोईस थाँने बणाई अन वींका मनकाँ ज्याँने पुवितर किदा हे वाँका हण्डे थाँने भी बापोती देई।
हो भायाँ, मूँ थाँने बताऊँ हूँ के, आपणी आ देह ज्यो माँस अन लुईऊँ बणी तकी हे परमेसर का राज में भेळी ने वे सके हे अन ने ज्यो नास वेबावाळी या देह हे, वाँ ज्यो अमर हे वींमें भेळी वे सके हे।
पण में ज्यो लिक्यो हो वो ओ हे के, कणी अस्या मनकऊँ वेवार मती राको ज्यो आपणाँ खुद ने मसी को विस्वासी केन भी कुकरमी, लोबी, मूरत्याँ पूजबावाळो, जूटी खबर देबावाळो, पीबावाळो, अन ठग वेवे। अस्या मनकाँ का हाते थाँ खाणो भी मती खावो।
थाँने ओ जाणणो हे के, कुकरमी, हूँगला मनक, अन लोबी मनक ज्यो मूरत पुजा करबावाळा का जस्यान हे अस्या मनकाँ का वाते मसी अन परमेसर का राज में बापोती कोयने हे।
ईं बात में कुई भी आपणाँ भई नेईस ने ठगे अन ने कुई किंको नफो लेणो छावे। काँके परबू आ हारी बाताँ को बदलो लेबा में हे, अणा बाताँ का बारा में माँ थाँने पेल्याँई बता दिदो अन चेताया भी हाँ।