कई थाँ ने जाणो हो के, थाँकी देह पुवितर आत्मा को मन्दर हे, ज्यो थाँकामें बसी तकी हे अन थाँने परमेसर का आड़ीऊँ मली हे अन वाँ थाँकी खुद की ने हे। थाँ खुदऊँ ने पण परमेसर का हो।
परबू का मन्दर को मूरत्याऊँ कई वेवार? काँके आपाँ खुदईस जीवता परमेसर का मन्दर हा, जस्यान वणा खुदईस क्यो हो, “मूँ वाँका में वास करिया करूँ, वाँका में चालूँ-फरूँ। मूँ वाँको परमेसर वेऊँ अन वीं मारा मनक वेई।
पण यद्याँ मारा आबा में टेम लागी तो, ईं कागदऊँ जाण जाज्यो के, आपणाँ परमेसर को घराणो, जीं जीवता परमेसर की मण्डली हे या हाँच की नीम अन थम्बो हे, वींके हाते आपाँने कस्यान को वेवार करणो छावे।
पण परमेसर का घराणा में मसी तो एक बेटा का रूप में विस्वास करबा के जोगो हे, अन यद्याँ आपाँ हिम्मत राका अन वीं आस पे विस्वास बण्यो तको राका हा, तो आपींइस वींको घराणो हा।
थाँ भी जीवता भाटा का जस्यान हो थाँने आत्मिक मन्दर का रूप बणाया जारिया हे, जणीऊँ थाँ पुवितर याजक का जस्यान बणन अस्यान का आत्मिक बलीदान चड़ावो, जो ईसू मसी के वजेऊँ परमेसर के चड़ाबा का जोगा वेवे।