55 “हे मोत थाँरी जीत कटे हे? अन थाँरो डंक कटे हे?”
नरक में दुक में तड़पता तका जद्याँ वणी आक्याँऊँ देक्यो के, अबराम वणीऊँ घणो छेटी हे, पण, वींने वो गरीब लाजर वींकी गोद में दिक्यो।
काँके थूँ मारी आत्माने पाताळ मेंईस ने छोड़ी, थूँ आपणाँ ईं पुवितर मनक ने कबर में हड़बा ने देई।
साउल पूँछ्यो, “परबू, थाँ कूण हो?” वीं बोल्या, “मूँ ईसू हूँ, जिंने थूँ हतारियो हे।”
पण आदमऊँ लेन मूसा का टेम तईं मोत हाराई पे राज करती री। मोत वाँका पे भी ही, जणा आदम के जस्यान पाप ने किदो हे। आदम आबावाळा का जस्यान को हो।
पाप एक डंक का जस्यान हे जणीऊँ आपाँ मरा हाँ अन आपणाँ नके नेम हे, जणीऊँ आपाँ जाणा हाँ के, आपीं पाप किदो हे।
वाँकी पुछ अस्यान लागरिया ही, जस्यान विच्छु का डंक वे। वाँने पाँच मिना तईं मनकाँ ने दुक देबा का वाते तागत दिदी गी ही।