“गण्डकड़ा का हामे पुवितर चिजाँ मती फेको अन ने हूँरा का हामे मोती वकेरो। काँके थाँ अस्यान करो तो वीं हूँर मोती ने आपणाँ पगाँ में गूंदी अन गण्डकड़ा पाच्छा फरन थाँकी पीड़ी पकड़ी।
अन यद्याँ कुई खुद ने परमेसर का आड़ीऊँ बोलबावाळो जाणे अन वींने आत्मिक वरदान भी मल्यो वे तो वींने ओ जाण लेणो छावे के, मूँ थाँने ज्यो कई भी लिकरियो हूँ, ओ परबू की आग्या हे।