25 माँस का बजार में ज्यो कई वके हे, वींने आपणाँ मन का हस्याबूँ खावो पण वींका बारा में कदी सवाल मती करो।
तो पाच्छी वींने दूजी दाण अवाज हुणई, “जो भी चिजाँ ने परमेसर सुद क्यो हे, वींने असुद ने केणी।”
ईं वजेऊँ थाँने अदिकारियाँ की आग्या मानणी जरूरी हे। सजा की दरपऊँईस ने पण थाँका अंतर-आत्मा की वजेऊँ भी ओ जरूरी हे।
परबू ईसू का गट-जोड़ में, मूँ पको मानूँ हूँ के, कस्यी भी चीज असुद कोयने। वाँ खाली वणी वाते असुद हे ज्यो वींने असुद माने हे।
पण ओ ग्यान हाराई का नके ने हे। नरई तो अबाणू भी मूरताँ की पुजा करे हे अन अस्यी चिजाँ खावे हे अन होचे हे के, जस्यान वीं चिजाँ मूरत्याँ को परसाद हे। ईं वाते वाँके अस्यान करबाऊँ वाँकी अंतर-आत्मा असुद वे जावे हे काँके वीं कमजोर हे।
काँके परमेसर की रची तकी हारी चिजाँ हव हे, कई भी छोड़बा जोगी ने हे, पण परातना अन धन्नेवाद करन हारोई खायो जा सके हे,
पुवितर मनकाँ का वाते हारोई पुवितर हे, पण हूँगला अन बना विस्वासवाळा का वाते कईस सुद ने हे, काँके वाँको मन अन वाँकी आत्मा दुई खराब हे।