“हरेक घरगोस्यन पहिले सक्कुहुनसे मजा अंगुरके रस देथाँ। और जब पिके मनैनके हौस बतैथिन, तब ओइने सस्ता अंगुरके रस देथाँ। पर अप्नि ते मजा अंगुरके रस अभिनसम बँचाके धारल बती।”
और जाँर-दारु पिके मदुवा ना बनो, काकरेकी यी चिज मनैनहे असभ्य और अनियंत्रित तरिकासे व्यवहार करैना कारण बनजाइत। बेन, पवित्र आत्माहे अपनहे नियन्त्रण करे देऊ।