अर बस्वास का मालिक अर बस्वास न्अ सिद्ध करबाळा ईसु की ओर न्हाळता रेवां। ज्योबी खुसी क ताणी ज्यो बीक्अ आग्अ मली छ लाज की कांई बी परवा कर्या बना करूस को दुख सह लियो। अर सिंहासन माळ्अ परमेसर की जीवणी-बगल जा बेठ्यो।
फेर परमेसर को मन्दर ज्यो सरग मं छ खोल्यो गियो अर उण्डअ करार की सन्दूक दीखी। फेर बिजळी चमकबा लागगी, उंका कड़कबा की आवाज, बादळा का गाजबा की आवाज अर भूकम्प आबा लागगो अर मोटा-मोटा गड़ा पड़बा लागगा।
ईक्अ पाछ्अ म देख्यो क एक घणीसारी जळा उबी छी, जिकी गणती कोई कोन कर सक्अ छो। ई जळा मं हर जाति का, हर वंस का, हर कुणबा का अर हर भाषा का लोगबाग उबा छा। वे बी सिंहासन अर बी उण्णेठा क आग्अ उबा छा। वे धोळा लत्ता पेर मेल्या छा अर वांका हाथा मं खजूर की डाळ्यां ले मेल्या छा।