प्रकासित वाक्य 22:14 - चोखो समचार (ढुंढाड़ी नया नियम)
14 “धनै छ वे ज्यो खुदका लत्ता धो लेव्अ छ। जिसुं वान्अ जन्दगी का रूंखड़ा का फळ खाबा को अधिकार होव्अलो। अर वे बाण्णा मं होर नगर मं उळबा का अधिकारी होव्अला।
जीक्अ कान होव्अ, वो सुणले क आत्मा बस्वास्या की टोळी सुं कांई खेव्अ छ। ज्यो जय पाव्अलो, म बीन्अ परमेसर का बाग मं लागेड़ा जन्दगी का रूंखड़ा को फळ खाबा को अधिकार देऊला।”
पण बीम्अ कोई गन्दो मनख, बेसर्मी का काम करबाळो, अर झूंट बोलबाळो कोन बड़्अलो। खाली बेई बी नगर मं बड़्अला ज्यांको नांऊ जन्दगी की कताब मं मण्ढेड़ा होव्अलो।
नगर की खास गळ्यां क गाब्अ सुं होर बेरी छी। नन्दी की दोनी तीरां प्अ जन्दगी का रूंखड़ा उगमेल्या छा। वाप्अ हरेक बरस बारा फसला लाग्अ छी। उंक्अ हरेक रूंखड़ा प्अ हर मिना एक फसल लाग्अ छी अर वा रूंखड़ा का पत्ता सबळी जात्या का मनखा न्अ निरोगो करबा बेई छा।
म जुवाब दियो, “ह म्हारा परबु, म कोन जाणु, तूई जाण्अ।” ईप्अ वो मन्अ खियो, “ये वे लोगबाग छ ज्यो जोरका सताव मंसुं होर आया छ, वे खुदका लत्ता न्अ उण्णेठा का लोई सुं धोर पवितर कर्या छ।