3 वे फेर जोरसुं खिया “परमेसर की जै हो! बीकी लाय सुं जुग-जुग ताणी धुंणी उठती रेव्अली।”
वस्यान ई म थान्अ याबी याद दुवाबो चाऊ छु क सदोम अर अमोरा अर आस-पास का नगर का मनख ज्यो बेगड़ो बेवार कर्या अर गलत तरीका सुं बेगड़ा कामा क पाछ्अ भागता रिया। वान्अ कद्या बी कोन्अ बझबाळी आग मं पटकबा की सज्या मली छी। आपान्अ चेताबा बेई वे एक खेणात की न्याई छ।
जुग-जुग ताणी बीकी पिड़ा सुं धुंणी उठती रेव्अली। अर जी कोई माळ्अ बी ज्यानबर की छाप लागेड़ी होव्अली अर ज्योबी ज्यानबर अर बीकी मूर्ति की आराधना करअलो, बीन्अ रात-दन कद्या बी चेन कोन मल्अलो।”
अर जद वे बीकी लाय का धुंआ न्अ देख्या तो खिया, ‘ई बड़ी नगरी की जस्यान कसी नगरी छ?’
“जद धरती का राजा, ज्यो बीकी लार व्यभिचार कर्या छा अर बीकी लार भोग-बिलास मं सीरी होया छा, बीकी लाय का धुंआ न्अ देख्अला तो वे बीक्अ ताणी रोव्अला अर बळ्ळाव्अला।
ईक्अ पाछ्अ म सरग मं एक जोरकी जळा न्अ या खेती सुण्यो “परमेसर की जै हो! उद्धार, महमा अर सक्ति परमेसर की छ।
फेर चौबीसुं बड़ाबूड़ा अर च्यारू जीवता जीव सिंहासन माळ्अ बेठ्या परमेसर क्अ ढोक देर बीकी आराधना करता होया खेबा लाग्या “परमेसर की जै हो! आमीन!”