9 “जद धरती का राजा, ज्यो बीकी लार व्यभिचार कर्या छा अर बीकी लार भोग-बिलास मं सीरी होया छा, बीकी लाय का धुंआ न्अ देख्अला तो वे बीक्अ ताणी रोव्अला अर बळ्ळाव्अला।
पण जुवान रांडबेरा को नांऊ इम्अ मत माण्ढज्यो क्युं क मसी बेई वांका समर्पण प जद्या वांकी काया की मन्सा जोरा हो जाव्अ छ तो वे फेरू बियाऊ करबो छाव्अ छ।
जुग-जुग ताणी बीकी पिड़ा सुं धुंणी उठती रेव्अली। अर जी कोई माळ्अ बी ज्यानबर की छाप लागेड़ी होव्अली अर ज्योबी ज्यानबर अर बीकी मूर्ति की आराधना करअलो, बीन्अ रात-दन कद्या बी चेन कोन मल्अलो।”
धरती का राजा बीकी लार वेभिचार कर्या अर धरती माळ्अ रेबाळा बीकी कामवासना की दारू सुं नसा मं भरग्या।”
अर जद वे बीकी लाय का धुंआ न्अ देख्या तो खिया, ‘ई बड़ी नगरी की जस्यान कसी नगरी छ?’
“हे सरग, हे परमेसर का लोगबागाओ, थरपेड़ा ओ अर परमेसर की ओड़ी सुं बोलबाळाओ खुसी मनाओ! क्युं क ज्यो बा थांकी लार करी छ बीन्अ परमेसर बीक्अ लायक डण्ड दियो छ।”
क्युं क बा सबळा लोगबागा न्अ व्यभिचार की दारू पाई छी। ई संसार का राजा बीकी लार व्यभिचार कर्या छा। अर बीका भोग-बिलास सुंई संसार का बौपारी भागवान होया छ।”
जतरी महमा अर आराम बा खुदन्अ दी छ, थे बीन्अ बत्तीई पीड़ा अर दुख द्यो। बा अपणा-आपन्अ खेव्अ छ क ‘म महाराणी छु, म बिधवा कोन्अ, फेर दुख क्युं मनाऊ?’
वे फेर जोरसुं खिया “परमेसर की जै हो! बीकी लाय सुं जुग-जुग ताणी धुंणी उठती रेव्अली।”
ई बजेसुं म बीन्अ दुखा की खाट माळ्अ पटकबाळो छु। अर बीकी लार बान्अ बी पटकूलो ज्यो बीकी लार व्यभिचार करअ छ। जद ताणी वे बीकी लार करेड़ा खोटा कामा सुं मन कोन फेरअला जद ताणी म बान्अ दुख देऊलो।