16 खेव्अ छ, ‘कतरो बरो, कतरो बरो, ज्यो ई महानगरी बेई होयो छ! बा चोखा मलमल, बेंगणी, लाल रंग का लत्ता पेरअ छी! अर हीरा, मोती जड़ेड़ा सोना का गेणा पेरअ छी।
फेर म आत्मा सुं भरग्यो अर वो दूत मन्अ उजाड़ मं लेगो जण्ढ्अ म बी लुगाई न्अ लाल रंग का अस्या ज्यानबर माळ्अ बेठेड़ी देख्यो ज्यो परमेसर की नन्दा का सबदा सुं भरेड़ो छो। बी ड़रावणा ज्यानबर क सात माथा अर दस सींग छा।
बा लुगाई बेंगणी अर लाल रंग का लत्ता पेर मेली छी। बा सोना, मेंगा रतन अर मोती पेर मेली छी। बा बीका हाथ मं सोना को कटोरो ले मेली छी। वो कटोरो बुरी चीजा अर बीकी कामवासना की चीजा सुं भरेड़ो छो।
अर जद वे बीकी लाय का धुंआ न्अ देख्या तो खिया, ‘ई बड़ी नगरी की जस्यान कसी नगरी छ?’
फेर वे खुदका माथा माळ्अ धूळ पटकर रोता अर बळाता होया खिया, ‘महानगरी! अरअ कतरो भयानक! अरअ कतरो भयानक छ यो। ज्यां कन्अ जहाज छा, वे बीसुं बौपार करर भागवान बणग्या, अर अब देखो, घड़ी भर मंई बीकी सबळी माया पूंजी खतम होगी।’