फेर सरग मं एक ओर जोरको अचम्बा को नसाण दिख्यो। मन्अ सात सरगदूत सात महामारया लिएड़ा दिख्या। ये आखरी महाविनास छ, क्युं क यांक्अ पाछ्अ परमेसर को रोष बी ठण्डो हो जाव्अ छ।
जिसुं बी बड़ी नगरी का तीन हस्सा होगा अर अधर्मया को नगर ढसगो। परमेसर बाबुल की बड़ी नगरी न्अ डण्ड देबा बेई याद कर्यो छो। जिसुं क वो बीका रोष सुं भभकतो कटोरो बीन्अ देव्अ।
फेर ज्यां सात सरगदूता कन्अ सात आखरी विपत्या सुं भरया सात कटोरा छा, बाम्अ सुं एक म्हारअ कन्अ आर खियो, “अण्डअ आ, म तन्अ लाड़ी दखाऊ, मतबल उण्णेठा की लुगाई।”
ईक्अ पाछ्अ मन्अ एक और दर्साव दिख्यो अर मन्अ सरग को बाण्णो खुलेड़ो दिख्यो। अर बाई आवाज जीन्अ मं पेली सुण्यो छो, तुरी की आवाज मं मन्अ खेरी छी, “उपरअ आजा। ज्यो बाता पक्की होबाळी छ म तन्अ दखाऊलो।”