7 वो जोरसुं खियो, “परमेसर सुं डरपो अर बीकी बड़ाई करो। क्युं क बीकी न्याऊ करबा की बगत आगी। बीकी आराधना करो, ज्यो आम्बर, धरती, सागर अर पाणी का सोता न्अ बणायो छ।”
“जिसुं सावधानर्यो। क्युं क थे न्अ तो उं दन न्अ जाणो अर न्अ उं बगत न्अ ज्दया मनख को छोरो पाछो आवलो।”
कांई ई परदेसी क अलावा बाम्असु कोई बी परमेसर की महमा करबा पाछो कोन्अ आयो?”
“ह भाईवो, थें अस्यान क्युं करर्या छो? मे बी थां जस्यानका ई मनख छा, अण्डअ मे थान्अ चोखो समचार सुणाबा आया छा क थें या बनाफालतु की चीजा सुं मुड़र बी जीवता परमेसर की ओड़ी आओ ज्यो आम्बर, धरती, समदर अर ज्योबी याम्अ छ, बीन्अ बणायो छ।
वा बगत सांकड्अ छ जद्या सबळी सृष्टी खतम हो जाव्अली, जिसुं थे खुद प्अ काबु रांखर परातना बेई साउचेत रेवो।
उंई बगत एक बड़ो भुकम्प आयो अर नगर को दसवो हस्सो ढसगो। बी भुकम्प सुं सात हजार लोगबाग मरग्या। अर ज्यो मरबा सुं बचग्या वे डरपर सरग का परमेसर की महमा की बड़ाई करबा लागग्या।
गेर यहूदी रोष मं भरग्या, पण अब थारा रोष की बगत छ। अर न्याऊ की बगत आगी। क मरेड़ा को न्याऊ हो सक्अ। अर बगत आगी क थारा सबळा सेवक ईनाम पाव्अ सबळा परमेसर की ओड़ी सुं बोलबाळा, थारा सबळा लोगबाग अर थारो आदर करबाळा सबळा, छोटा-बड़ा ईनाम पाव्अ। अर धरती न्अ बगाड़बाळा न्अ खतम कर्यो जाव्अ।”
हे परबु, थारसुं सबळा डरप्अला। थारो नांऊ लेर सबळा बड़ाई करअला, क्युं क तूई पवितर छ। सबळी जात्या आर थारी आराधना करअ। क्युं क थारा धरम का काम दिखर्या छ।”
अर लोगबाग जोरकी गरमी सुं भळसबा लागगा। वे परमेसर की नन्दा करबा लागग्या क्युं क ये विपत्या परमेसर कांई बसम्अ छ। पण ब वांका पापा सुं पाछा कोन फरया अर परमेसर की महमा कोन कर्या।
वे बीका दुखा सुं डरपर आंतरअ उबा होर खेवला, ‘हे! सक्तिसाली नगर बाबुल! कतरो बरो, कतरो बरो! तन्अ थोड़ी ई बार मं थारो डण्ड मलगो।’
अर घड़ी भर मंई बीकी सारी माया पूंजी खतम हेगी।’ “फेर जहाजा न्अ चलाबाळा, वांका कप्तान, यात्री अर ज्योबी सागर सुं कमाव्अ छा, बी नगरी सुं आंतरअ उबा होगा।
फेर वे खुदका माथा माळ्अ धूळ पटकर रोता अर बळाता होया खिया, ‘महानगरी! अरअ कतरो भयानक! अरअ कतरो भयानक छ यो। ज्यां कन्अ जहाज छा, वे बीसुं बौपार करर भागवान बणग्या, अर अब देखो, घड़ी भर मंई बीकी सबळी माया पूंजी खतम होगी।’
सिंहासन सुं फेरू आवाज आर खेई, “सबळा परमेसर का सेवक अर लोगबागाओ, अर छोटा बड़ाओ, आपणा परमेसर की महमा करो।”
“हे म्हाका परबु अर परमेसर! तूई महमा, आदरमान अर सक्ति क लायक छ, क्युं क तूई थारी मन्सा सुं सबळी चीजान्अ बणायो छ। वे थारी मन्सा सुंई छी, अर थारीई मन्सा सुं सबळी चीजा की रचना होई छ।”
जद ये जीवता जीव बी जुग-जुग जिन्दा रेबाळा की महमा, आदर और धन्यवाद करर्या छा ज्यो सिंहासन माळ्अ बेठ्यो छो तो
तीसरो सरगदूत जद तुरी बजायो तो एक बड़ो तारो बळतो होया आम्बर सुं पड़ग्यो। यो तारो सबळी नंद्या अर झरणा का तीसरा हस्सा माळ्अ जा पड़यो।