क्युं क मसी मनखा का हाथ की बणाएड़ी बी पवितर ठार मं कोन्अ बड़यो, ज्यो सांची पवितर ठार की नकल छ। पण सरग मं ई बड़यो छ। जिसुं अब वो आपण्अ ताणी परमेसर क साम्अ पेरवी करअ छ।
फेर म सिंहासन मंसुं एक जोरकी आवाज न्अ या खेती सुण्यो, “अब परमेसर को घर मनखा क्अ बीचम्अ छ अर वो बाकी लार रेव्अलो। अर वे बीकी परजा होव्अला अर खुद परमेसर बाको परमेसर होव्अलो।
ईक्अ पाछ्अ मन्अ एक और दर्साव दिख्यो अर मन्अ सरग को बाण्णो खुलेड़ो दिख्यो। अर बाई आवाज जीन्अ मं पेली सुण्यो छो, तुरी की आवाज मं मन्अ खेरी छी, “उपरअ आजा। ज्यो बाता पक्की होबाळी छ म तन्अ दखाऊलो।”
फेर म सुण्यो क सरग की, धरती माळ्अ की, पताळ की, समून्दर की, सारी रचना; हां, बी सबळा ब्रह्माण्ड का हर जीव खेर्या छा, “ज्यो सिंहासन माळ्अ बेठ्यो छ उंकी अर उण्णेठा की बढ़ाई, आदरमान, महमा अर पराक्रम जुग-जुग रेव्अ।”
ईक्अ पाछ्अ म देख्यो क एक घणीसारी जळा उबी छी, जिकी गणती कोई कोन कर सक्अ छो। ई जळा मं हर जाति का, हर वंस का, हर कुणबा का अर हर भाषा का लोगबाग उबा छा। वे बी सिंहासन अर बी उण्णेठा क आग्अ उबा छा। वे धोळा लत्ता पेर मेल्या छा अर वांका हाथा मं खजूर की डाळ्यां ले मेल्या छा।