क्युं क थोड़ासाक मनख म्हारा बारा मं या खेव्अ छ क उंका कागद हिया न्अ ठेस पुचाबाळी अर दुख देबाळी छ। पण जद्या वो आपण्अ साम्अ होव्अ छ तो वो भोळो अर उंकी बाता मं दम कोन होव्अ
म घणी मेनत करर गाढो थाक'र जन्दगी जीयो छु। केई बार म सो बी कोन सक्यो। केई बार भूखो तसायो रियो छु। केई बार तो म आधो भूखा रियो। अर घणी बार तो स्याळा म बना लत्ता क धूजतो रियो।