51 वो अपणा हाथा की तागत दखायो छ वो घमण्डया न्अ कण-कणका कर दियो।
वे परमेसर न्अ जाण्अ तो छ पण उन्अ सम्मान अर धन्यवाद कोन देव्अ। पण वांका बच्यार बेकार का होग्या अर वांका बेबुद्धि का मन अन्धेरा सुं भरग्या।
जिसुं म्हे वा सब घमण्ड की बाता न्अ ज्यो परमेसर का ज्ञान क खिलाफ छ नकारा छा; अर हरेक भावना न्अ बसम्अ रांखर मसी की आज्ञा मानबाळा बणा देवा छा।
अस्यान ही ह छोरा-छापराओ, थे बी टोळी का मुखिया का खिया मं रेवो, पण थे सब एक-दूसरा की सेवा क ताणी नरमाई सुं त्यार रेवो, क्युं क परमेसर घमण्डया को बिरोध करअ छ, पण सिधा मनखा माळ्अ दीया करअ छ।
ई बजेसुं उंप्अ एक दन मं बिपदा आ पड़्अली, महामोत, काळ, महाकळेस अर लाई, लाई बीन्अ बाळर भसम कर देव्अली, क्युं क बीको न्याऊ करबाळो परबु परमेसर सक्तिमान छ।