ईसु जुवाब दियो, “अर ज्यो तु परमेसर का बरदान न्अ जाणती अर या बी जाणती क वो कुण छ ज्यो थन्अ या खेर्यो छ क, ‘मन्अ पाणी पा’ तो तु उसुं मांगती अर वो थन्अ जन्दगी देबाळो पाणी देतो।”
पण ज्यो मोत का गेल्ला प नास होबा बेई जार्या छ वां बेई मोत की सुगन्ध छ अर ज्यो छूटवाड़ा का गेल्ला प जार्या छ वा बेई जन्दगी की सुगंध छा पण ई काम बेई काबिल कुण छ?
क्युं क हरेक चोखो बरदान अर सबसुं चोखो दान सरग सुंई आव्अ छ अर उजाळा का बाप की ओड़ी सुं मल्अ छ, बीम्अ न्अ तो कोई बदलाव हो सक्अ अर न्अ वो फेर-बदल की बजेसुं छाया न्अ बणाव्अ।
पण ज्यो ज्ञान सरग सुं आव्अ छ, वो पेली तो पवितर होव्अ छ, फेर मेलमिलाप हाळो, प्यारो, बात मानबाळो अर दीया सुं भरया अर चोखा फळा सुं लदेड़ो अर बना भेदभाव हाळो अर खरो होव्अ छ।