खुदकी अर पवितर-आत्मा सुं थांका हाथा म सुंपी लळ्डया की रुखाळी करता रेवो। अर परमेसर की बी बस्वास्या की टोळी का गुवाळ बण जावो जिन्अ वो खुदका छोरा का लोई सुं मोल लियो छ।
अब म थान्अ परमेसर अर उंकी दीया का चोखा संदेसा का हाथा मं सुपर्यो छु। बोई थान्अ बणा सक्अ छ अर थान्अ वा मनखा की लार ज्यांन्अ पवितर कर्यो जा चुक्यो थांकी बापोती दुवा सक्अ छ।
या सृष्टी ही नही पण आपा बी ज्यांन्अ आत्मा को पहलो फळ मल्यो छ, मेईन्अ सुं कण्जर्या छ। क्युं क आपा बाठ नाळर्या छा क वो आपान्अ ओलाद की जस्यान अपणा लेव्अ अर आपणी काया आजाद हो जाव्अ।
पण थे एक टाळेड़ो बंस, परमेसर का मन्दर मं सेवा करबाळा राज करमचार्या को समाज, अर पवितर मनख, परमेसर की परजा छो, थान्अ अन्धेरा मंसुं अदभुत उजाळा मं जिसुं बलायो गियो छ क थे बीका गुणा न्अ दखावो।