उण्डअ घणो हल्लो माचग्यो। फरीस्या का टोळा मंसुं एकात धरम सखाबाळा उठ्या अर जोरसुं बेस करता होया खेबा लाग्या, “ई मनख मं मे कोई खोट कोन्अ पाया। अर ज्यो कोई आत्मा या कोई सरगदूत इसुं बाता कर्यो छ तो इम्अ कांई छ?”
दूसरअ दन बीका अपणा मनखा मंसुं कोई मनख लड़रया छा तो वो बाम्अ मेल जोल कराबा की जोरी कर खियो, “ओ भाईवो, थें तो भाई भाई छो। फेरबी एक-दूसरा सुं क्युं लड़रया छो?”
भाया तीतुस! म ईसु मसी की ओड़ी सुं थरपेड़ो परमेसर को दास पौलुस थन्अ यो कागद माण्ढ़र्यो छु। म परमेसर का टाळेड़ा मनखा न्अ वांका बस्वास मं बड़ाबा बेई, अर सांच की सक्ष्या देबा बेई खन्दायो गियो छु, जिसुं वे भगती की जन्दगी मं जीव्अ।
पण ज्यो ज्ञान सरग सुं आव्अ छ, वो पेली तो पवितर होव्अ छ, फेर मेलमिलाप हाळो, प्यारो, बात मानबाळो अर दीया सुं भरया अर चोखा फळा सुं लदेड़ो अर बना भेदभाव हाळो अर खरो होव्अ छ।
थे पाबा की मन्सा करो छो अर थान्अ मल्अ कोन, तो थे मारबा बेई त्यार रेवो छो। थे बळ्यामरो छो पण थान्अ मल्अ कोन्अ, तो थे लड़ाई झगड़ा करो छो। थान्अ जिसुं कोन मल्अ क्युं क थे परमेसर सुं मांगो कोन।