म्हारी परमेसर सुं अरदास छ क थांका मन की आंख्या खुल जाव्अ जिसुं थे जाण सको क जी आस ताणी थान्अ वो बलायो छ अर जी पांती न्अ वो खुदका सबळा पवितर मनखा न्अ देव्अलो, बा कतरी महान अर अनमोल छ।
अर जिसुं म्हे लगतमार परमेसर को धन्यवाद करां छा क्युं क थे जद्या म्हासुं परमेसर को बचन सुण्या छा तो म्हे उन्अ मनखा को संदेस मानबा की बेई परमेसर को संदेस मान्या छा, वस्यानई वो सांचो छ, अर थां बस्वास करबाळा मं परमेसर काम बी करर्यो छ।
अर याई बजे छ जिसुं म या बाता को दुख उठार्यो छु। अर फेरबी सरमाऊ कोन्अ क्युं क जिप्अ म बस्वास कर्यो छु म उन्अ जाणु छु अर म या मानु छु क वो मन्अ ज्यो सुंप्यो छ वो उंकी रुखाळी करबा मं समर्थ छ जद्या ताणी वो पाछो आबा को दन आव्अ।
अब जीत को मुकुट म्हारी बाठनाळर्यो छ। उं दन सांचो न्याऊ करबाळो परबु मन्अ जीत को मुकुट फरावलो। मन्अ ई नही पण वां सबळा न्अ बी ज्यो परेम सुं उंका आबाकी बाठनाळरया छ।
पण थे एक टाळेड़ो बंस, परमेसर का मन्दर मं सेवा करबाळा राज करमचार्या को समाज, अर पवितर मनख, परमेसर की परजा छो, थान्अ अन्धेरा मंसुं अदभुत उजाळा मं जिसुं बलायो गियो छ क थे बीका गुणा न्अ दखावो।