2 ई काया म आपा नसास भरता रेवा छा। अर घणा चावां क सरग की काया न्अ पेरल्या।
म एक बदनसीब मनख छ। मन्अ ई काया सुं ज्यो मोत को गास छ छूटवाड़ो कुण दुवाव्अलो?
या सृष्टी ही नही पण आपा बी ज्यांन्अ आत्मा को पहलो फळ मल्यो छ, मेईन्अ सुं कण्जर्या छ। क्युं क आपा बाठ नाळर्या छा क वो आपान्अ ओलाद की जस्यान अपणा लेव्अ अर आपणी काया आजाद हो जाव्अ।
थे चत लगार सूणो, म थान्अ एक भेद की बात बताऊ छु। आपा सबळा मरा कोन्अ, पण आपणो रूप बदळ्यो जाव्अलो।
या दोन्या मं सुं एक न्अ चुणबा मं मन्अ कसमकस होरी छ। म म्हारी जन्दगी सुं बद्या होर मसी कन्अ जाबो चाऊ छु क्युं क वो म्हारअ ताणी साऊटो चोखो छ।