16 हमेसा राजी रेवो।
ज्दया राजी होर मोज करज्यो, क्युं क सरग मं थान्अ घणुसारो फळ मल्अलो। जिसुं क वे वां परमेसर की ओड़ी सुं बोलबाळा न्अ ज्यो थासुं पेली छा अस्यान'ई सताया छा।”
पण बस ई बात पई राजी मत हेवो क आत्मा थांका बसम्अ छ पण जिसुं राजी हेवो क सरग मं थांका नांऊ मण्ढर्या छ।”
लोगबाग उन्अ खिया, “हे माराज, तु म्हान्अ वा रोटी द अर सदाई दिया जाज्यो।”
आस मं राजी रेवो। दुखा मं थरचा राखो अर हर बगत परातना करता रेवो।
म्हाका मन दुखी छ पण सदाई राजी रेवां छा, मै कंगला की जस्यान छा पण दूसरा मनखा न्अ पिसाळा बणा देवा छा, म्हे रिता हाथा दीखां छा पण म्हारअ कन्अ सब कुछ छ।
परबु का गठजोड़ म सदाई राजी रेवो। मं फेर खेर्यो छु, राजी रेवो।