क्युं क थोड़ासाक मनख म्हारा बारा मं या खेव्अ छ क उंका कागद हिया न्अ ठेस पुचाबाळी अर दुख देबाळी छ। पण जद्या वो आपण्अ साम्अ होव्अ छ तो वो भोळो अर उंकी बाता मं दम कोन होव्अ
वो कमजोरी म छो तो वो सुळी प मर्यो पण वो परमेसर की सक्ति सुं जिन्दो छ। अर उंका गठजोड़ मं म्हे बी तो कमजोर छा पण थांका भला बेई परमेसर की सक्ति की बजेसुं उंकी लार जीव्अला।