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- Sanasan -




यरमियाह 5:3 - किताब-ए मुक़द्दस

3 ऐ रब, तेरी आँखें दियानतदारी देखना चाहती हैं। तूने उन्हें मारा, लेकिन उन्हें दुख न हुआ। तूने उन्हें कुचल डाला, लेकिन वह तरबियत पाने के लिए तैयार नहीं। उन्होंने अपने चेहरे को पत्थर से कहीं ज़्यादा सख़्त बनाकर तौबा करने से इनकार किया है।

Faic an caibideil Dèan lethbhreac

इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019

3 ऐ ख़ुदावन्द, क्या तेरी आँखें सच्चाई पर नही हैं? तूने उनको मारा है, लेकिन उन्होंने अफ़सोस नहीं किया; तूने उनको बर्बाद किया, लेकिन वह तरबियत — पज़ीर न हुए; उन्होंने अपने चेहरों को चट्टान से भी ज़्यादा सख़्त बनाया, उन्होंने वापस आने से इन्कार किया है।

Faic an caibideil Dèan lethbhreac




यरमियाह 5:3
45 Iomraidhean Croise  

अगले दिन बड़ी बहन ने छोटी बहन से कहा, “पिछली रात मैं अब्बू से हमबिसतर हुई। आओ, आज रात को हम उसे दुबारा मै पिलाएँ। जब वह नशे में धुत हो तो तुम उसके साथ हमबिसतर होकर अपने लिए औलाद पैदा करना ताकि हमारी नसल क़ायम रहे।”


इन वाक़ियात के बावुजूद यरुबियाम अपनी शरीर हरकतों से बाज़ न आया। आम लोगों को इमाम बनाने का सिलसिला जारी रहा। जो कोई भी इमाम बनना चाहता उसे वह ऊँची जगहों के मंदिरों में ख़िदमत करने के लिए मख़सूस करता था।


फिर बादशाह ने तीसरी बार एक अफ़सर को 50 फ़ौजियों के साथ इलियास के पास भेज दिया। लेकिन यह अफ़सर इलियास के पास ऊपर चढ़ आया और उसके सामने घुटने टेककर इलतमास करने लगा, “ऐ मर्दे-ख़ुदा, मेरी और अपने इन 50 ख़ादिमों की जानों की क़दर करें।


रब तो अपनी नज़र पूरी रूए-ज़मीन पर दौड़ाता रहता है ताकि उनकी तक़वियत करे जो पूरी वफ़ादारी से उससे लिपटे रहते हैं। आपकी अहमक़ाना हरकत की वजह से आपको अब से मुतवातिर जंगें तंग करती रहेंगी।”


गो वह उस वक़्त बड़ी मुसीबत में था तो भी रब से और दूर हो गया।


यक़ीनन तू बातिन की सच्चाई पसंद करता और पोशीदगी में मुझे हिकमत की तालीम देता है।


मुझे दुबारा ख़ुशी और शादमानी सुनने दे ताकि जिन हड्डियों को तूने कुचल दिया वह शादियाना बजाएँ।


उस शख़्स ने अपना हाथ अपने दोस्तों के ख़िलाफ़ उठाया, उसने अपना अहद तोड़ लिया है।


बेदीन आदमी गुस्ताख़ अंदाज़ से पेश आता है, लेकिन सीधी राह पर चलनेवाला सोच-समझकर अपनी राह पर चलता है।


रब की आँखें इल्मो-इरफ़ान की देख-भाल करती हैं, लेकिन वह बेवफ़ा की बातों को तबाह होने देता है।


तू कहेगा, “मेरी पिटाई हुई लेकिन दर्द महसूस न हुआ, मुझे मारा गया लेकिन मालूम न हुआ। मैं कब जाग उठूँगा ताकि दुबारा शराब की तरफ़ रुख़ कर सकूँ?”


अगर अहमक़ को अनाज की तरह ओखली और मूसल से कूटा भी जाए तो भी उस की हमाक़त दूर नहीं हो जाएगी।


ऐ रब, गो तेरा हाथ उन्हें मारने के लिए उठा हुआ है तो भी वह ध्यान नहीं देते। लेकिन एक दिन उनकी आँखें खुल जाएँगी, और वह तेरी अपनी क़ौम के लिए ग़ैरत को देखकर शरमिंदा हो जाएंगे। तब तू अपनी भस्म करनेवाली आग उन पर नाज़िल करेगा।


इसी वजह से उसने उन पर अपना सख़्त ग़ज़ब नाज़िल किया, उन्हें शदीद जंग की ज़द में आने दिया। लेकिन अफ़सोस, गो आग ने क़ौम को घेरकर झुलसा दिया ताहम उसे समझ नहीं आई, गो वह भस्म हुई तो भी उसने दिल से सबक़ नहीं सीखा।


मैं जानता था कि तू कितना ज़िद्दी है। तेरे गले की नसें लोहे जैसी बे-लचक और तेरी पेशानी पीतल जैसी सख़्त है।


क्योंकि इसके बावुजूद भी लोग सज़ा देनेवाले के पास वापस नहीं आएँगे और रब्बुल-अफ़वाज के तालिब नहीं होंगे।


जिस तरह गंदुम को हवा में उछालकर भूसे से अलग किया जाता है उसी तरह मैं उन्हें मुल्क के दरवाज़ों के सामने फटकूँगा। चूँकि मेरी क़ौम ने अपने ग़लत रास्तों को तर्क न किया इसलिए मैं उसे बेऔलाद बनाकर बरबाद कर दूँगा।


लेकिन उन्होंने मेरी न सुनी, न तवज्जुह दी बल्कि अपने मौक़िफ़ पर अड़े रहे और न मेरी सुनी, न मेरी तरबियत क़बूल की।


“रब्बुल-अफ़वाज जो इसराईल का ख़ुदा है फ़रमाता है कि सुनो! मैं इस शहर और यहूदाह के दीगर शहरों पर वह तमाम मुसीबत लाने को हूँ जिसका एलान मैंने किया है। क्योंकि तुम अड़ गए हो और मेरी बातें सुनने के लिए तैयार ही नहीं।”


मैंने तुम्हारे बच्चों को सज़ा दी, लेकिन बेफ़ायदा। वह मेरी तरबियत क़बूल नहीं करते। बल्कि तुमने फाड़नेवाले शेरबबर की तरह अपने नबियों पर टूटकर उन्हें तलवार से क़त्ल किया।


इसी वजह से बहार में बरसात का मौसम रोका गया और बारिश नहीं पड़ी। लेकिन अफ़सोस, तू कसबी की-सी पेशानी रखती है, तू शर्म खाने के लिए तैयार ही नहीं।


तेरे मक़ासिद अज़ीम और तेरे काम ज़बरदस्त हैं, तेरी आँखें इनसान की तमाम राहों को देखती रहती हैं। तू हर एक को उसके चाल-चलन और आमाल का मुनासिब अज्र देता है।


“रब्बुल-अफ़वाज जो इसराईल का ख़ुदा है फ़रमाता है कि यहूदाह और यरूशलम के बाशिंदों के पास जाकर कह, ‘तुम मेरी तरबियत क्यों क़बूल नहीं करते? तुम मेरी क्यों नहीं सुनते?


आज तक तुमने न इंकिसारी का इज़हार किया, न मेरा ख़ौफ़ माना, और न मेरी शरीअत के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारी। तुम उन हिदायात के ताबे न रहे जो मैंने तुम्हें और तुम्हारे बापदादा को अता की थीं।’


तो भी उन्होंने न मेरी सुनी, न तवज्जुह दी। वह बज़िद रहे बल्कि अपने बापदादा की निसबत ज़्यादा बुरे थे।


तब तू उन्हें बताएगा, ‘इस क़ौम ने न रब अपने ख़ुदा की आवाज़ सुनी, न उस की तरबियत क़बूल की। दियानतदारी ख़त्म होकर उनके मुँह से मिट गई है।’


तो फिर यरूशलम के यह लोग सहीह राह से बार बार क्यों भटक जाते हैं? यह फ़रेब के साथ लिपटे रहते और वापस आने से इनकार ही करते हैं।


जिन लोगों के पास मैं तुझे भेज रहा हूँ वह बेशर्म और ज़िद्दी हैं। उन्हें वह कुछ सुना दे जो रब क़ादिरे-मुतलक़ फ़रमाता है।


ऐ यरूशलम, अपनी बेहया हरकतों से तूने अपने आपको नापाक कर दिया है। अगरचे मैं ख़ुद तुझे पाक-साफ़ करना चाहता था तो भी तू पाक-साफ़ न हुई। अब तू उस वक़्त तक पाक नहीं होगी जब तक मैं अपना पूरा ग़ुस्सा तुझ पर उतार न लूँ।


मूसा की शरीअत में मज़कूर हर वह लानत हम पर नाज़िल हुई जो नाफ़रमानों पर भेजी गई है। तो भी न हमने अपने गुनाहों को छोड़ा, न तेरी सच्चाई पर ध्यान दिया, हालाँकि इससे हम रब अपने ख़ुदा का ग़ज़ब ठंडा कर सकते थे।


अगर तुम फिर भी मेरी तरबियत क़बूल न करो बल्कि मेरे मुख़ालिफ़ रहो


रब फ़रमाता है, “मैंने तुम्हारे दरमियान ऐसी मोहलक बीमारी फैला दी जैसी क़दीम ज़माने में मिसर में फैल गई थी। तुम्हारे नौजवानों को मैंने तलवार से मार डाला, तुम्हारे घोड़े तुमसे छीन लिए गए। तुम्हारी लशकरगाहों में लाशों का ताफ़्फ़ुन इतना फैल गया कि तुम बहुत तंग हुए। तो भी तुम मेरे पास वापस न आए।”


रब फ़रमाता है, “मैंने तुम्हारे दरमियान ऐसी तबाही मचाई जैसी उस दिन हुई जब मैंने सदूम और अमूरा को तबाह किया। तुम्हारी हालत बिलकुल उस लकड़ी की मानिंद थी जो आग से निकालकर बचाई तो गई लेकिन फिर भी काफ़ी झुलस गई थी। तो भी तुम वापस न आए।


रब फ़रमाता है, “मैंने काल पड़ने दिया। हर शहर और आबादी में रोटी ख़त्म हुई। तो भी तुम मेरे पास वापस नहीं आए!


जिस शहर में थोड़ा-बहुत पानी बाक़ी था वहाँ दीगर कई शहरों के बाशिंदे लड़खड़ाते हुए पहुँचे, लेकिन उनके लिए काफ़ी नहीं था। तो भी तुम मेरे पास वापस न आए!” यह रब का फ़रमान है।


रब फ़रमाता है, “मैंने तुम्हारी फ़सलों को पतरोग और फफूँदी से तबाह कर दिया। जो भी तुम्हारे मुतअद्दिद अंगूर, अंजीर, ज़ैतून और बाक़ी फल के बाग़ों में उगता था उसे टिड्डियाँ खा गईं। तो भी तुम मेरे पास वापस न आए!”


मैं बोला, ‘बेशक यरूशलम मेरा ख़ौफ़ मानकर मेरी तरबियत क़बूल करेगा। क्योंकि क्या ज़रूरत है कि उस की रिहाइशगाह मिट जाए और मेरी तमाम सज़ाएँ उस पर नाज़िल हो जाएँ।’ लेकिन उसके बाशिंदे मज़ीद जोश के साथ अपनी बुरी हरकतों में लग गए।”


अब हम जानते हैं कि ऐसे काम करनेवालों पर अल्लाह का फ़ैसला मुंसिफ़ाना है।


देखें, जब हमारे इनसानी बाप ने हमारी तरबियत की तो हमने उस की इज़्ज़त की। अगर ऐसा है तो कितना ज़्यादा ज़रूरी है कि हम अपने रूहानी बाप के ताबे होकर ज़िंदगी पाएँ।


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