3 जेख्णी मेम्ने दुईं मौहर खोलि, तां मीं दूं जीव ऐ बोलतै शुणु, “अबै गा, आघै चल।”।
ऐठणीरै तेईनी तैन्हैं कब्रि पनि गहि करि अपड़ै निशांण ला करि कब्रिरू द्वार बंद करि करि सै सही बंद करि दित्तु ताकि कौ ऐस ऐठां किना घैरी ना दिया। फिरी तैन्हैं कब्रिरिरी रखवालिरै तेईनी तैठि किछ सिपाहि छडि छडै।
ऐन्हां मझ पेहिला जीव शैरा सैयि आ, दुवां जीव बछड़ु सैयि, त्रियें जीवैरू मुँह मैहणु सैयि थियु जां चोउथा जीव उकाबा सैयि आ।
तां मीं तकाउ कि मेम्ने तैन्हांं सत्ता मौहरा मझां अक मौहर खोलि जां मीं तैन्हांं चोउवा जीवा मझां अक जीव हक दींता शुणा, जेसैरी आवाज गुणूंणा काति थी। तेनी बौलु, अबै गहा।
मेम्ने जेख्णी सत्तवीं मौहर खोलि ता सैक्यै सभ जै स्वर्गा मझ थ्यै, अधा घन्टा शान्त भौ गियै।