16 धिक्कार आ! धिक्कार आ, तैस महान नगरा पन जैस पन मलमल, बैगनी जां लाल रंगेरै लिकड़ै लगोरै थ्यै, जां सुन्नै, चांदी जां मोतियै ला सजौरू थियु;
आत्मायरी मजति ला, स्वर्गदूत मूं रेगिस्थाना मझ लै ग्या; मीं तैड़ि अक जनानि लधि, जै एकि रागसा पन सवार थी, जेसैरा रंग लाल थ्या। तेसेरै सत्त मुन्डक जां दश शिंगै थ्यै। तेसेरा शरीर तैन्हैं नाँईयें ला ढकौरा थ्या, जै परमेश्वरेरी निंदा कातै।
ऐस जनानि पन बैंगनी जां लाल रंगैरै लिकड़ै लगोरै थ्यै। तेनी अपांणा सुन्नैरै गहणै, कीमति पत्थरा जां मंहगै मोतियै ला सजाउरा थ्या। अपड़ै सुमलै हत्था मझ तेनी मदिरा ला भरौरा अक सुन्नैरा जग पकड़ोरा थ्या, जेनि ला पता लगी गहींथ्या, कि गंदी चीज व्यभिचार काति।
जेख्णी सै आग जै शहरा फुकति आ, तेसैरा धूँ तकांणा, ता तैन्हांं चिंडै दींणी जां बोलणु, कि ऐस महान शहरा सैयि हौरा कोई शहर ना भुआ।
तैन्हैं अपड़ा दुख लुहानेरै तेईनी अपड़ु शिरा धूड़ मयि जां हिक पिटि जां लैरी दी-करि बोलणा लगै, “धिक्कार आ! धिक्कार आ! ऐस महान नगरा पन! तैस जनानि किनि निग्गर सपंति भूंणै ला, सभ जंणै जै जहाजा केरै मालिक थ्यै, सै सारै धनवान भौ ग्यै, जां तेनी थोड़े टैंमा मझ अजागै अपड़ि धन-सम्पत्ति गंवा छडि।”