चट्टान पे के बे आंय, कि जब सुनत आंय, तो खुसी से बचन हां अपना तो लेत आंय, पर जड़ न पकड़बे से बे तनक देर हां बिसवास रखत आंय, पर जांच परख की बेरा डगमगा जात आंय।
कायसे रुपईया कौ लोभ सब परकार की बुराईयन की जड़ आय, जीहां पाबे की कोसिस करत भए कितेक जनें बिसवास की गैल से भटक के अपने आप हां बिलात परकार के दुखों से छलनी कर लओ आय।
बे हम में से निकले हते परन्त सांचई हम में के नईं हते; कायसे हमाए बीच के होते, तो हमाए संग्गै रैते, उन के निकल जाबे से पता पड़त आय कि बे हमाए बीच के न हते।