मैं तुम से सांची सांची कहत आंव, जौन मोरो बचन सुनके मोरे पठैबेवाले पे भरोसा करत आय, अनन्त जीवन ऊ को आय, और ऊ पे दण्ड कौ हुकुम नईं हुईये, परन्त बो मृत्यु से पार होकें जीवन में पिड़ चुको आय।
जौ सब ऊ दिना हुईये, जब पिरभू अपने मानबेवारन में जस पाहें, और सबरे बिसवास करबेवारन में अजूबा दिखा है; कायसे जौन बातें हम ने तुम हां बताई हतीं उन हां तुम ने मानो आय।
जिन ने ऊ बीती बेरा में हुकम न मानो जब परमेसुर नूह के दिना में धीरज धर ठैरो रओ, और जहाज बन रओ हतो, जीमें बैठ के तनक जने, जाने कि आठ प्रानी पानू से बच गए।
पिरभु अपने कौल के विषय में अबेर नईं करत, जैसो कि कितेक जनें समजत आंय; बो नईं चाहत कि कौनऊं मान्स नास होबे; परन्त जौ कि सबई हां हिया बदलबे कौ मौका मिले।