अउर सिपाहिव यूहन्ना से पूँछिन, “हम पंचे का करी?” तब यूहन्ना उनसे कहिन, “जबरजस्ती कोहू से धन न लिहा, अउर न कउनव मनई के ऊपर झूँठ अरोप लगाया, बलकिन अपने तनखाह माहीं सन्तोस किहा।”
अउर हमहीं पंचन काहीं सोक करँइ बालेन कि नाईं माना जात हय, पय हम पंचे हमेसा आनन्दित रहित हएन, अउर हम पंचे कंगालन कि नाईं देखइत हएन, पय खुब मनइन काहीं आत्मिक रूप से धनी बनाय देइत हएन। अउर मनई समझत हें, कि हमरे पंचन के लघे कुछू नहिं आय, तऊ हमरे पंचन के लघे सब कुछ रहत हय।
अउर तूँ पंचे हमरे पंचन के प्रभू यीसु मसीह के किरपा काहीं जनतेन हया, कि ऊँ केतना धनी रहे हँय, तऊ ऊँ तोंहरे पंचन के खातिर एसे कंगाल बनिगें, कि जउने तूँ पंचे उनखे कंगाल होंइ से धनी बन जा।
अउर परमातिमा तोंहईं पंचन काहीं हरेकमेर के उत्तम बरदान जरूरत से जादा दइ सकत हें, जउने तोंहरे लघे हरेक समय जरूरत के सगली चीजँय रहँय, अउर हरेक निकहे कामन के खातिर तोंहरे पंचन के लघे देंइ के खातिर सब कुछ भरपूर रहय।
काहेकि तूँ पंचे जेल माहीं परे मनइन के दुखन माहीं भागीदार बने हया, अउर अपने धन-सम्पत्ती काहीं खुसी के साथ, इआ जानिके लुट जाँइ दिहा हय। कि हमरे पंचन के लघे ओहू से उत्तम अउर कबहूँ न खतम होंइ बाली धन-सम्पत्ती ही।