काहेकि ऊँ पंचे इआ बात से दुखी रहे हँय, जउन पवलुस उनसे कहिन तय, कि “अपना पंचे हमार मुँह पुनि कबहूँ न देखे पाउब”; अउर ऊँ पंचे उनहीं जिहाज के लघे तक पहुँचाइन।
अउर हम इहय बात तोंहईं एसे लिखेन हय, कि कहँव अइसा न होय, कि जब हम तोंहरे पंचन के लघे अई, त जिनसे हमहीं आनन्द मिलँइ चाही, त हम उनहिन के कारन दुखी होई; काहेकि हमहीं तोंहरे सगले जनेन के ऊपर इआ बात के भरोसा हय, कि जउन आनन्द हमार हय, उआ तोंहरव पंचन के घलाय आनन्द हय।