रोमियों 9 - उर्दू हमअस्र तरजुमाइस्राईल पर पौलुस की ईज़ारसानी 1 मैं अलमसीह में सच कहता हूं, झूट नहीं बोलता बल्के मेरा ज़मीर भी पाक रूह के ताबे होकर गवाही देता है 2 के मुझे बड़ा ग़म है और मेरा दिल हर वक़्त दुखता रहता है। 3 काश ऐसा हो सकता के अपने यहूदी भाईयों की ख़ातिर जो जिस्म के लिहाज़ से मेरी क़ौम के लोग हैं, मैं ख़ुद मलऊन होकर अलमसीह से महरूम हो जाता! 4 यानी बनी इस्राईल, ख़ुदा के मुतनब्बा होने का हक़ के सबब जलाल, अह्द, शरीअत और ख़िदमत, बैतुलमुक़द्दस में इबादत का शरफ़ बख़्शा गया और ख़ुदा के वादे भी उन ही के लिये हैं। 5 क़ौम के बुज़ुर्ग उन ही के हैं और अलमसीह भी जिस्मानी तौर पर उन ही की नस्ल से थे जो सब से आला हैं और अबद तक ख़ुदा-ए-मुबारक हैं। आमीन। क़ादिर-ए-मुतलक़ ख़ुदा का इन्तिख़ाब 6 इस का ये मतलब नहीं के ख़ुदा का वादा बातिल हो गया क्यूंके जितने इस्राईल की नस्ल से हैं वह सब के सब इस्राईली नहीं। 7 और न ही सिर्फ़ उन की नस्ल होने के बाइस वह हज़रत इब्राहीम के फ़र्ज़न्द ठहरे बल्के ख़ुदा का वादा ये था, “तुम्हारी नस्ल का नाम इज़हाक़ ही से आगे बढ़ेगा।” 8 इस से मुराद ये है: जिस्मानी तौर पर पैदा होने वाले फ़र्ज़न्द ख़ुदा के फ़र्ज़न्द नहीं बन सकते बल्के सिर्फ़ वह जो ख़ुदा के वादे के मुताबिक़ पैदा हुए हैं, हज़रत इब्राहीम की नस्ल शुमार किये जाते हैं। 9 क्यूंके वादे के क़ौल यूं है: “मैं मुक़र्ररः वक़्त पर फिर वापस आऊंगा, और सारह के हां बेटा होगा।” 10 सिर्फ़ यही नहीं बल्के रिबक़ा के बच्चे भी हमारे आबा-ओ-अज्दाद इज़हाक़ ही के तुख़्म से थे। 11 और अभी न तो उस के जुड़वां लड़के पैदा हुए थे और न ही उन्होंने कुछ नेकी या बदी की थी के ख़ुदा ने अपने मक़सद को पूरा करने के लिये उन में से एक को चुन लिया। 12 ख़ुदा का ये फ़ैसला उन के आमाल की बिना पर न था बल्के बुलाने वाले की अपनी मर्ज़ी पर था। इसीलिये रिबक़ा से कहा गया, “बड़ा छोटे की ख़िदमत करेगा।” 13 जैसा के किताब-ए-मुक़द्दस में लिख्खा है: “मैंने याक़ूब से महब्बत रख्खी मगर ऐसौं से अदावत।” 14 तो फिर हम क्या कहें? क्या ये के ख़ुदा के हां नाइन्साफ़ी है? हरगिज़ नहीं! 15 क्यूंके ख़ुदा हज़रत मूसा से फ़रमाता है, “जिस पर मुझे रहम करना मन्ज़ूर होगा उस पर रहम करूंगा, और जिस पर तरस खाना मन्ज़ूर होगा उस पर तरस खाऊंगा।” 16 लिहाज़ा ये न तो आदमी की ख़ाहिश या उस की जद्दोजहद पर बल्के ख़ुदा के रहम पर मुन्हसिर है। 17 इसीलिये किताब-ए-मुक़द्दस में फ़िरऔन से कहा गया है: “मैंने तुझे इसलिये बरपा क्या है के तेरे ख़िलाफ़ अपनी क़ुदरत ज़ाहिर करूं और सारी ज़मीन में मेरा नाम मशहूर हो जाये।” 18 पस ख़ुदा जिस पर रहम करना चाहता है, रहम करता है और जिस पर सख़्ती करना चाहता है उस का दिल सख़्त कर देता है। 19 शायद तुम में से कोई मुझ से ये पूछे: “अगर ये बात है तो ख़ुदा इन्सान को क्यूं क़ुसूरवार ठहराता है? कौन उस की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ खड़ा हो सकता है?” 20 लेकिन ऐ इन्सान! तुम किस मुंह से ख़ुदा को जवाब देते हो? “क्या बनाई हुई शै अपने बनाने वाले से कह सकती है के तुम ने मुझे ऐसा क्यूं बनाया?” 21 क्या कुम्हार को मिट्टी पर इख़्तियार नहीं के एक ही लौन्दे में से एक बर्तन तो ख़ास मौक़ों पर इस्तिमाल किये जाने के लिये बनाये और दूसरा आम इस्तिमाल के लिये। 22 अगर ख़ुदा ने भी ऐसा किया तो तअज्जुब की कौन सी बात है? ख़ुदा अपने ग़ज़ब और अपनी क़ुदरत को ज़ाहिर करने के लिये इरादे से ग़ज़ब के बर्तनों को जो हलाकत के लिये तय्यार किये गये थे, निहायत सब्र से बर्दाश्त करता रहे। 23 और ये इसलिये हुआ के ख़ुदा अपने जलाल की दौलत रहम के बर्तनों पर ज़ाहिर करे जिन्हें उस ने अपने जलाल के लिये पहले ही से तय्यार किया हुआ था। 24 यानी हम पर जिन्हें उस ने न फ़क़त यहूदियों में से बल्के ग़ैरयहूदियों में से भी बुलाया। 25 होसेअ नबी की किताब में भी ख़ुदा यही फ़रमाता है: “जो ‘मेरी उम्मत’ न थी उसे मैं अपनी उम्मत बना लूंगा; और जो मेरी महबूबा न थी उसे अपनी महबूबा कहूंगा,” 26 और, “जिस जगह उन से ये कहा गया था, ‘तुम मेरी उम्मत नहीं हो,’ उसी जगह उन्हें ‘ज़िन्दा ख़ुदा के फ़र्ज़न्द कहा जायेगा।’ ” 27 और यसायाह नबी भी इस्राईल के बारे में पुकार कर फ़रमाते हैं: “अगरचे बनी इस्राईल की तादाद समुन्दर की रेत के ज़र्रों के बराबर होगी, तो भी उन में से थोड़े ही बचेंगे। 28 क्यूंके ख़ुदावन्द ज़मीन पर अपने फ़ैसले को निहायत तेज़ी के साथ अमल में लायेगा।” 29 चुनांचे जैसा के हज़रत यसायाह ने पेशीनगोई की है: “अगरचे लश्करों का ख़ुदावन्द हमारी नस्ल को बाक़ी न रहने देता, तो हम सदूम की मानिन्द और अमूरा की मानिन्द हो जाते।” इस्राईल की बेएतक़ादी 30 पस हम क्या कहें? ये के ग़ैरयहूदी जो रास्तबाज़ी के तालिब न थे, ईमान लाकर रास्तबाज़ी हासिल कर चुके, यानी वह रास्तबाज़ी जो ईमान के सबब से है। 31 लेकिन इस्राईल जो रास्तबाज़ी की शरीअत का तालिब था, उस शरीअत तक न पहुंचा। 32 क्यूं? इसलिये के उन्होंने ईमान से नहीं बल्के आमाल के ज़रीये उसे हासिल करना चाहा और ठोकर लगने वाले पत्थर से ठोकर खाई। 33 जैसा के किताब-ए-मुक़द्दस में लिख्खा है: “देखो, मैं सिय्यून में एक ठेस लगने का पत्थर रखता हूं जिस से लोग ठोकर खायेंगे और एक ठोकर खाने की चट्टान जो उन के गिरने का बाइस होगी, मगर जो कोई उस पर ईमान लायेगा वह कभी शर्मिन्दा न होगा।” |
उर्दू हमअस्र तरजुमा™ नया अह्दनामा
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की इजाज़त से इस्तिमाल किया जाता है। दुनिया भर में तमाम हक़ महफ़ूज़।
Urdu Contemporary Version™ New Testament (Devanagari Edition)
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