1 यूहन्ना 3 - उर्दू हमअस्र तरजुमा1 देखो, आसमानी बाप ने हम से कैसी महब्बत की है के हम ख़ुदा के फ़र्ज़न्द कहलाते हैं और हम वाक़ई हैं भी। दुनिया हमें इसलिये नहीं जानती क्यूंके इस ने हुज़ूर ईसा को भी नहीं जाना। 2 ऐ अज़ीज़ दोस्तों! इस वक़्त हम ख़ुदा के फ़र्ज़न्द हैं लेकिन अभी तक ये ज़ाहिर नहीं हुआ है के हम और क्या होंगे लेकिन इतना ज़रूर जानते हैं के जब हुज़ूर ईसा फिर से ज़ाहिर होंगे तो हम भी उन की मानिन्द होंगे क्यूंके हम हुज़ूर को वैसा ही देखेंगे जैसा वो हैं। 3 और जो कोई हुज़ूर ईसा में ये उम्मीद रखता है वो अपने आप को वैसा ही पाक रखता है, जैसा वो पाक है। 4 जो कोई गुनाह करता है वो शरीअत की मुख़ालफ़त करता है क्यूंके गुनाह शरीअत की मुख़ालफ़त ही है। 5 लेकिन तुम जानते हो के हुज़ूर ईसा इसलिये ज़ाहिर हुए ताके वो हमारे गुनाहों को उठा ले ज़ाए और उस की ज़ात में गुनाह नहीं है। 6 जो कोई उस में क़ाइम रहता है वो गुनाह नहीं करते रहता और जो कोई गुनाह करते रहता है उस ने न तो हुज़ूर ईसा को देखा है और न ही उन को जानता है। 7 ऐ अज़ीज़ फ़र्ज़न्दों! किसी के फ़रेब में न आना। जो रास्तबाज़ी के काम करता है वो रास्तबाज़ है जैसा के हुज़ूर ईसा रास्तबाज़ हैं। 8 जो शख़्स गुनाह करते रहता है वो इब्लीस से है क्यूंके इब्लीस शुरू ही से गुनाह करता आया है। ख़ुदा का बेटा इसलिये ज़ाहिर हुआ ताके इब्लीस के कामों को तबाह कर दे। 9 जो कोई ख़ुदा से पैदा हुआ है वो लगातार गुनाह नहीं करता क्यूंके उन के अन्दर ख़ुदा का तुख़्म क़ाइम रखता है। वो लगातार गुनाह कर ही नहीं सकते क्यूंके वो ख़ुदा से पैदा हुए हैं। 10 इसी से ज़ाहिर होता है के कौन ख़ुदा के फ़र्ज़न्द हैं और कौन इब्लीस के। जो कोई रास्तबाज़ी के काम नहीं करता वो ख़ुदा का फ़र्ज़न्द नहीं और जो अपने भाई या बहन से महब्बत नहीं रखता वो भी ख़ुदा का फ़र्ज़न्द नहीं है। आपस में महब्बत रखो 11 क्यूंके जो पैग़ाम तुम ने शुरू से ही सुना वो ये है के हम एक दूसरे से महब्बत रखें। 12 और क़ाइन की मानिन्द न बनें जो इस शैतान से था। जिस ने अपने भाई को क़त्ल किया और क्यूं क़त्ल किया? इसलिये के उस के तमाम काम बदी के थे मगर उस के भाई के काम रास्तबाज़ी के थे। 13 चुनांचे ऐ भाईयों और बहनों! अगर दुनिया तुम से दुश्मनी रखती है तो तअज्जुब न करो। 14 क्यूंके हम जानते हैं के हम मौत से निकल कर ज़िन्दगी में दाख़िल हो गये हैं, क्यूंके हम एक दूसरे से महब्बत रखते हैं। जो महब्बत नहीं रखता वो गोया मुर्दे की तरह है। 15 जो कोई अपने भाई से अदावत रखता है वो ख़ूनी है और तुम जानते हो के किसी ख़ूनी में अब्दी ज़िन्दगी मौजूद नहीं रहती। 16 हम ने महब्बत को इसी से जाना है के हुज़ूर ईसा ने हमारे लिये अपनी जान क़ुर्बान कर दी। और हम पर भी ये फ़र्ज़ है के हम अपने भाईयों के वास्ते अपनी जान क़ुर्बान करें। 17 अगर किसी के पास दुनिया का माल मौजूद है लेकिन वो अपने भाई को मोहताज देखकर उस पर रहम करने से बाज़ रहता है तो ख़ुदा की महब्बत उस में किस तरह क़ाइम रह सकती है? 18 ऐ अज़ीज़ फ़र्ज़न्दों! हम महज़ कलाम और ज़बान ही से नहीं बल्के हक़ीक़ी तौर से और अपने अमल से भी महब्बत का इज़हार करें। 19 ग़रज़ इस से हम जान लेते हैं के हम हक़ के हैं और हमें ख़ुदा की हुज़ूरी में दिली इत्मीनान हासिल होगा। 20 अगर हमारा ज़मीर हमें इल्ज़ाम दे तो ख़ुदा तो हमारे ज़मीर से बड़ा है और वो सब कुछ जानता है। 21 ऐ अज़ीज़ दोस्तों! अगर हमारा ज़मीर हमें मुजरिम नहीं ठहराता तो हमें ख़ुदा की हुज़ूरी में दिलेरी होती है। 22 और हम जो कुछ ख़ुदा से मांगते हैं वो उस की तरफ़ से हमें मिलता है क्यूंके हम उस के हुक्मों पर अमल करते हैं और वोही करते हैं जो उसे पसन्द है। 23 और उस का हुक्म ये है के हम उस के बेटे हुज़ूर ईसा अलमसीह के नाम पर ईमान लायें और उस के हुक्म के मुताबिक़ एक दूसरे से महब्बत रखें। 24 जो कोई ख़ुदा के हुक्मों पर अमल करता है वो ख़ुदा में क़ाइम रहता है और ख़ुदा उस में, और ख़ुदा ने जो पाक रूह हमें बख़्शा है, हम उसी के वसीले से ये जानते हैं के ख़ुदा हम में क़ाइम रहता है। |
उर्दू हमअस्र तरजुमा™ नया अह्दनामा
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की इजाज़त से इस्तिमाल किया जाता है। दुनिया भर में तमाम हक़ महफ़ूज़।
Urdu Contemporary Version™ New Testament (Devanagari Edition)
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