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- Sanasan -

1 सलातीन 18 - इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019


सोख़्ता शहर में मुकाबला

1 और बहुत दिनों के बाद ऐसा हुआ कि ख़ुदावन्द का यह कलाम तीसरे साल एलियाह पर नाज़िल हुआ, कि “जाकर अख़ीअब से मिल, और मैं ज़मीन पर मेंह बरसाऊँगा।”

2 इसलिए एलियाह अख़ीअब से मिलने को चला; और सामरिया में सख़्त काल था।

3 और अख़ीअब ने 'अबदियाह को, जो उसके घर का दीवान था, तलब किया और अबदियाह ख़ुदावन्द से बहुत डरता था,

4 क्यूँकि जब ईज़बिल ने ख़ुदावन्द के नबियों को क़त्ल किया तो 'अबदियाह ने सौ नबियों को लेकर, पचास पचास करके उनको एक ग़ार में छिपा दिया, और रोटी और पानी से उनको पालता रहा —

5 इसलिए अख़ीअब ने 'अबदियाह से कहा, “मुल्क में गश्त करता हुआ पानी के सब चश्मों और सब नालों पर जा, शायद हम को कहीं घास मिल जाए, जिससे हम घोड़ों और खच्चरों को ज़िन्दा बचा लें ताकि हमारे सब चौपाए जाया' न हों।”

6 तब उन्होंने उस पूरे मुल्क में गश्त करने के लिए, उसे आपस में तक़सीम कर लिया; अख़ीअब अकेला एक तरफ़ चलाऔर 'अबदियाह अकेला दूसरी तरफ़ गया।

7 और 'अबदियाह रास्ते ही में था कि एलियाह उसे मिला, वह उसे पहचान कर मुँह के बल गिरा और कहने लगा, “ऐ मेरे मालिक एलियाह, क्या तू है?”

8 उसने उसे जवाब दिया, मैं ही हूँ जा अपने मालिक को बता दे कि एलियाह हाज़िर है।

9 उसने कहा, “मुझ से क्या गुनाह हुआ है, जो तू अपने ख़ादिम को अख़ीअब के हाथ में हवाले करना चाहता है, ताकि वह मुझे क़त्ल करे।

10 ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा की हयात की क़सम, कि ऐसी कोई क़ौम या हुकूमत नहीं जहाँ मेरे मालिक ने तेरी तलाश के लिए न भेजा हो; और जब उन्होंने कहा कि वह यहाँ नहीं, तो उसने उस हुकूमत और क़ौम से क़सम ली कि तू उनको नहीं मिला है।

11 और अब तू कहता है कि जाकर अपने मालिक को ख़बर कर दे कि एलियाह हाज़िर है।

12 और ऐसा होगा कि जब मैं तेरे पास से चला जाऊँगा, तो ख़ुदावन्द की रूह तुझ को न जाने कहाँ ले जाए; और मैं जाकर अख़ीअब को ख़बर दूँ और तू उसको कहीं मिल न सके, तो वह मुझको क़त्ल कर देगा। लेकिन मैं तेरा ख़ादिम लड़कपन से ख़ुदावन्द से डरता रहा हूँ।

13 क्या मेरे मालिक को जो कुछ मैंने किया है नहीं बताया गया, कि जब ईज़बिल ने ख़ुदावन्द के नबियों को क़त्ल किया, तो मैंने ख़ुदावन्द के नबियों में से सौ आदमियों को लेकर, पचास — पचास करके उनको एक ग़ार में छिपाया और उनको रोटी और पानी से पालता रहा?

14 और अब तू कहता है कि जाकर अपने मालिक को ख़बर दे कि एलियाह हाज़िर है; तब वह मुझे मार डालेगा।”

15 तब एलियाह ने कहा, “रब्ब — उल — अफ़वाज की हयात की क़सम जिसके सामने मैं खड़ा हूँ, मैं आज उससे ज़रूर मिलूँगा।”

16 तब 'अबदियाह अख़ीअब से मिलने को गया और उसे ख़बर दी; और अख़ीअब एलियाह की मुलाक़ात को चला।

17 और जब अख़ीअब ने एलियाह को देखा, तो उसने उससे कहा, “ऐ इस्राईल के सताने वाले, क्या तू ही है?”

18 उसने जवाब दिया, “मैंने इस्राईल को नहीं सताया, बल्कि तू और तेरे बाप के घराने ने, क्यूँकि तुमने ख़ुदावन्द के हुक्मों को छोड़ दिया, और तू बा'लीम का पैरोकार हो गया।

19 इसलिए अब तू क़ासिद भेज; और सारे इस्राईल को और बा'ल के साढ़े चार सौ नबियों को, और यसीरत के चार सौ नबियों को जो ईज़बिल के दस्तरख़्वान पर खाते हैं कर्मिल की पहाड़ी पर मेरे पास इकट्ठा कर दे।”

20 तब अख़ीअब ने सब बनी — इस्राईल को बुला भेजा, और नबियों को कर्मिल की पहाड़ी पर इकट्ठा किया।

21 और एलियाह सब लोगों के नज़दीक आकर कहने लगा, “तुम कब तक दो ख़्यालों में डाँवाडोल रहोगे? अगर ख़ुदावन्द ही ख़ुदा है, तो उसकी पैरवी करो; और अगर बा'ल है, तो उसकी पैरवी करो।” लेकिन उन लोगों ने उसे एक हर्फ़ जवाब न दिया।

22 तब एलियाह ने उन लोगों से कहा, “एक मैं ही अकेला ख़ुदावन्द का नबी बच रहा हूँ, लेकिन बा'ल के नबी चार सौ पचास आदमी हैं।

23 इसलिए हम को दो बैल दिए जाएँ, और वह अपने लिए एक बैल को चुन लें और उसे टुकड़े टुकड़े काटकर लकड़ियों पर धरें और नीचे आग न दें; और मैं दूसरा बैल तैयार करके उसे लकड़ियों पर धरूँगा, और नीचे आग नहीं दूँगा।

24 तब तुम अपने मा'बूद से दुआ करना, और मैं ख़ुदावन्द से दुआ करूँगा; और वह ख़ुदा जो आग से जवाब दे, वही ख़ुदा ठहरे।” और सब लोग बोल उठे, “ख़ूब कहा!”

25 तब एलियाह ने बा'ल के नबियों से कहा कि “तुम अपने लिए एक बैल चुनलो और पहले उसे तैयार करो क्यूँकि तुम बहुत से हो; और अपने मा'बूद से दुआ करो, लेकिन आग नीचे न देना।”

26 इसलिए उन्होंने उस बैल को लेकर जो उनको दिया गया उसे तैयार किया; और सुबह से दोपहर तक बा'ल से दुआ करते और कहते रहे, ऐ बा'ल, हमारी सुन! “लेकिन न कुछ आवाज़ हुई और न कोई जवाब देने वाला था। और वह उस मज़बह के पास जो बनाया गया था कूदते रहे।

27 और दोपहर को ऐसा हुआ कि एलियाह ने उनको चिढ़ाकर कहा, बुलन्द आवाज़ से पुकारो; क्यूँकि वह तो मा'बूद है, वह किसी सोच में होगा, या वह तनहाई में है, या कहीं सफ़र में होगा, या शायद वह सोता है, इसलिए ज़रूर है कि वह जगाया जाए।”

28 तब वह बुलन्द आवाज़ से पुकारने लगे, और अपने दस्तूर के मुताबिक़ अपने आप को छुरियों और नश्तरों से घायल कर लिया, यहाँ तक कि लहू लुहान हो गए।

29 वह दोपहर ढले पर भी शाम की क़ुर्बानी चढ़ाकर नबुव्वत करते रहे; लेकिन न कुछ आवाज़ हुई, न कोई जवाब देने वाला, न ध्यान करने वाला था।

30 तब एलियाह ने सब लोगों से कहा कि “मेरे नज़दीक आ जाओ।” चुनाँचे सब लोग उसके नज़दीक आ गए। तब उसने ख़ुदावन्द के उस मज़बह को, जो ढा दिया गया था, मरम्मत किया।

31 और एलियाह ने या'क़ूब के बेटों के क़बीलों के गिनती के मुताबिक़, जिस पर ख़ुदावन्द का यह कलाम नाज़िल हुआ था कि “तेरा नाम इस्राईल होगा,” बारह पत्थर लिए,

32 और उसने उन पत्थरों से ख़ुदावन्द के नाम का एक मज़बह बनाया; और मज़बह के आस पास उसने ऐसी बड़ी खाई खोदी, जिसमें दो पैमाने बीज की समाई थी,

33 और लकड़ियों को तरतीब से चुना और बैल भी टुकड़े — टुकड़े काटकर लकड़ियों पर धर दिया, और कहा, चार मटके पानी से भरकर उस सोख़्तनी क़ुर्बानी पर और लकड़ियों पर उँडेल दो।”

34 फिर उसने कहा, “दोबारा करो।” उन्होंने दोबारा किया; फिर उसने कहा, “तिबारा करो।” तब उन्होंने तिबारा भी किया।

35 और पानी मज़बह के चारों तरफ़ बहने लगा, और उसने खाई भी पानी से भरवा दी।

36 और शाम की क़ुर्बानी पेश करने के वक़्त एलियाह नबी नज़दीक आया और उसने कहा “ऐ ख़ुदावन्द अब्रहाम और इज़्हाक़ और इस्राईल के ख़ुदा! आज मा'लूम हो जाए कि इस्राईल में तू ही ख़ुदा है, और मैं तेरा बन्दा हूँ, और मैंने इन सब बातों को तेरे ही हुक्म से किया है।

37 मेरी सुन, ऐ ख़ुदावन्द, मेरी सुन! ताकि यह लोग जान जाएँ कि ऐ ख़ुदावन्द, तू ही ख़ुदा है; और तू ने फिर उनके दिलों को फेर दिया है।”

38 तब ख़ुदावन्द की आग नाज़िल हुई और उसने उस सोख़्तनी क़ुर्बानी को लकड़ियों और पत्थरों और मिट्टी समेत भसम कर दिया, और उस पानी को जो खाई में था चाट लिया।

39 जब सब लोगों ने यह देखा, तो मुँह के बल गिरे और कहने लगे, “ख़ुदावन्द वही ख़ुदा है, ख़ुदावन्द वही ख़ुदा है।”

40 एलियाह ने उनसे कहा, “बा'ल के नबियों को पकड़ लो, उनमें से एक भी जाने न पाए।” इसलिए उन्होंने उनको पकड़ लिया, और एलियाह उनको नीचे कोसोन के नाले पर ले आया और वहाँ उनको क़त्ल कर दिया।

41 फिर एलियाह ने अख़ीअब से कहा, “ऊपर चढ़ जा, खा और पी, क्यूँकि कसरत की बारिश की आवाज़ है।”

42 इसलिए अख़ीअब खाने पीने को ऊपर चला गया। और एलियाह कर्मिल की चोटी पर चढ़ गया, और ज़मीन पर सरनगू होकर अपना मुँह अपने घुटनों के बीच कर लिया,

43 और अपने ख़ादिम से कहा, “ज़रा ऊपर जाकर समुन्दर की तरफ़ तो नज़र कर।” इसलिए उसने ऊपर जाकर नज़र की और कहा, “वहाँ कुछ भी नहीं है।” उसने कहा, “फिर सात बार जा।”

44 और सातवें मर्तबा उसने कहा, “देख, एक छोटा सा बादल आदमी के हाथ के बराबर समुन्दर में से उठा है।” तब उसने कहा, “जा और अख़ीअब से कह कि अपना रथ तैयार कराके नीचे उतर जा, ताकि बारिश तुझे रोक न ले।”

45 और थोड़ी ही देर में आसमान घटा और आँधी से सियाह हो गया और बड़ी बारिश हुई; और अख़ीअब सवार होकर यज़र'एल को चला।

46 और ख़ुदावन्द का हाथ एलियाह पर था; और उसने अपनी कमर कस ली और अख़ीअब के आगे — आगे यज़र'एल के मदख़ल तक दौड़ा चला गया।

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Indian Revised Version (IRV) - Urdu (इंडियन रिवाइज्ड वर्जन - उर्दू), 2019 by Bridge Connectivity Solutions Pvt. Ltd. is licensed under a Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 International License. This resource is published originally on VachanOnline, a premier Scripture Engagement digital platform for Indian and South Asian Languages and made available to users via vachanonline.com website and the companion VachanGo mobile app.

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