1 कुरिन्थियों 2 - चोखो समचार (ढुंढाड़ी नया नियम)सुळी प लटक्या मसी का बारा मं संदेस 1 ह भायाओ, जद्या म परमेसर का भेद को सत सुणाता होया थां कन्अ आयो तो बाणी की चतराई या फेर मनखा की बुद्धि की लार उपदेस देता होया कोन आयो छो। 2 क्युं क म या ठाण लियो छो क थांक्अ गाब्अ रेताहोया म ईसु मसी अर उंकी सुळी की मोत क अलावा ओर कांई बी बात न्अ कोन्अ जाणु। 3 जिसुं म थांकी लार नरमाई अर ड़र सुं कांपतो-कांपतो रियो। 4 अर म्हारी बाणी अर म्हारा संदेस मनखा का ज्ञान सुं राजी करबाळा सब्दा सुं कोन भरया छा पण उम्अ परमेसर की आत्मा की सक्ती का परमाण छा, 5 जिसुं क थांको बस्वास मनखा का ज्ञान की बज्याई परमेसर की सक्ती मं टक्अ। परमेसर को ज्ञान 6 ज्यो समझदार छ, वान्अ म्हे बुद्धि देवा छा पण यो ज्ञान ई संसार को कोन्अ अर न्अ ई संसार मं राज करबाळा राजा को जिकी सक्ति नास होबाळी छ। 7 ईकी बज्याई म्हे तो परमेसर का भेद का ज्ञान न्अ देवा छा ज्यो लुख मेल्यो छ अर जिन्अ परमेसर संसार न्अ बणाबा सुं पेलीसुंई म्हाकी महमा बेई ठेरायो छ। 8 अर ई जुग को कस्यो बी राज करबाळो ईन्अ कोन समझ्यो क्युं क वे उन्अ समझता तो वे उं महमा का धणी परबु न्अ सुळी प कोन चढ़ाता। 9 पण जस्यान पवितर सास्तर मं मण्ढरी छ। “ज्यांन्अ आंख्या देखी कोन्अ अर कान सुण्या कोन्अ। अर ज्यो बाता मनखा का चत मं कोन्अ चढ़ी वेई छ ज्यो परमेसर बीसुं परेम करबाळा बेई त्यार कर्यो छ।” 10 पण परमेसर वांई बाता न्अ आत्मा सुं आपण्अ बेई परगट कर्यो छ। क्युं क आत्मा हरेक बात न्अ हेर लेव्अ छ अण्डअ ताणी क परमेसर की राजहाळी बाता न्अ बी। 11 अस्यानको कुण छ ज्यो दूसरा का मन की बाता न्अ जाणले। मनखा की आत्मा क अलावा खुदका बच्यारा न्अ कोई कोन जाण्अ, वस्यान ई परमेसर की आत्मा क अलावा परमेसर का बारा मं कोई कोन जाण्अ। 12 आपा मं संसार की आत्मा कोन्अ पण आपा खुला मन सुं वा आत्मा पाया छा ज्यो परमेसर की ओड़ी सुं छ क आपा वां बाता न्अ जाण सकां, ज्यो परमेसर आपान्अ दियो छ। 13 वांई बाता न्अ मनखा की समझ सुं उपज्या सब्दा सुं कोन्अ बोल्या पण आत्मा सुं उपज्या सब्दा सुं आत्मा की चीजा को बखान करता होया बोल्अ छा। 14 पण संसार को मनख परमेसर की आत्मा की बाता न्अ कोन्अ मान्अ, क्युं क वे उंकी नजरा मं मुरखता की बाता छ, अर न्अ वो वान्अ जाण सक्अ छ क्युं क उंकी जांच आत्मा की रीत सुं होव्अ छ। 15 आत्मिक मनख सबन्अ जांच्अ छ, पण उन्अ कोई बी कोन जांच सक्अ। क्युं क सास्तर मं मण्ढरी छ, 16 “परबु का मन न्अ कुण जाण्यो, क उन्अ सखाव्अ?” पण आपा यां बाता न्अ समझ सका छा क्युं क आपा मं मसी को मन छ। |
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