ज़बूर 2 - किताब-ए मुक़द्दसअल्लाह का मसीह 1 अक़वाम क्यों तैश में आ गई हैं? उम्मतें क्यों बेकार साज़िशें कर रही हैं? 2 दुनिया के बादशाह उठ खड़े हुए, हुक्मरान रब और उसके मसीह के ख़िलाफ़ जमा हो गए हैं। 3 वह कहते हैं, “आओ, हम उनकी ज़ंजीरों को तोड़कर आज़ाद हो जाएँ, उनके रस्सों को दूर तक फेंक दें।” 4 लेकिन जो आसमान पर तख़्तनशीन है वह हँसता है, रब उनका मज़ाक़ उड़ाता है। 5 फिर वह ग़ुस्से से उन्हें डाँटता, अपना शदीद ग़ज़ब उन पर नाज़िल करके उन्हें डराता है। 6 वह फ़रमाता है, “मैंने ख़ुद अपने बादशाह को अपने मुक़द्दस पहाड़ सिय्यून पर मुक़र्रर किया है!” 7 आओ, मैं रब का फ़रमान सुनाऊँ। उसने मुझसे कहा, “तू मेरा बेटा है, आज मैं तेरा बाप बन गया हूँ। 8 मुझसे माँग तो मैं तुझे मीरास में तमाम अक़वाम अता करूँगा, दुनिया की इंतहा तक सब कुछ बख़्श दूँगा। 9 तू उन्हें लोहे के शाही असा से पाश पाश करेगा, उन्हें मिट्टी के बरतनों की तरह चकनाचूर करेगा।” 10 चुनाँचे ऐ बादशाहो, समझ से काम लो! ऐ दुनिया के हुक्मरानो, तरबियत क़बूल करो! 11 ख़ौफ़ करते हुए रब की ख़िदमत करो, लरज़ते हुए ख़ुशी मनाओ। 12 बेटे को बोसा दो, ऐसा न हो कि वह ग़ुस्से हो जाए और तुम रास्ते में ही हलाक हो जाओ। क्योंकि वह एकदम तैश में आ जाता है। मुबारक हैं वह सब जो उसमें पनाह लेते हैं। |
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